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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राज. भाषा ने संविधान री 8वीं अनुसुची मांय
शामिल करवा वास्ते करिया गया प्रयास


राजस्थानी भाषा ने संविधान री 8वीं अनुसुची मांय
शामिल करवा में आणे वाळी समस्यायां

राजस्थान की भाषा साहित्य, संस्कृति इतिहास की दृष्टि से समृद्धता ने विश्व में अपनी अलग एवं विशिष्ठ छवि बनाई हुई है। दुनिया भर में शोधार्थी इन विषयों पर शोध कर राजस्थानी भाषा साहित्य की समृद्ध परम्परा से समाज को अवगत करवाकर गौरवांन्वित हो रहे है। इसी तरह यू.जी.सी. साहित्य अकादमी व देश के अनेकानेक विश्वविघालयों में राजस्थानी भाषा साहित्य के विषयों पर शोध अनुवाद प्रकाशन हो रहे है जो देश दुनिया में अपनी ऐतिहासिक उपस्थिति दर्ज करवा रहे है। राजस्थान की पूर्व रियासतो की एवं मालवा की अमझेरा, सैलाना, रतलाम, सीतामाऊ, झाबुआ, उमरकोट  पाकिस्तान रियासतो की राजभाषा राजस्थानी थी  जिनके रियासती दस्तावेज अभिलेखागार में सुरक्षित है।  राजस्थानी राज, जन, धर्म, सभी क्षेत्रों में शताब्दियों से करोडों लोंगों के भाव, विचार, संवाद, राज्यादेश, पत्राचार का माध्यम रही है। आजादी आने के साथ ही हमारी जनतंत्री सरकारों ने यहां की जनभाषा राजस्थानी को राजभाषा के दर्जे से दूर किया एवं दूसरा सबसे दुर्भाग्यपूर्ण कार्य किया राजस्थानी को शिक्षा से निकाल दिया  जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हमारी तीन पीढियां ऐसी पैदा हुई जिनको अपनी मातृभाषा पढने का मौका भी नहीं मिला  जो बच्चा मां की गोद में जन्म लेने के साथ एवं गोद में जो भाषा सीखना शुरू कर स्कूल प्रवेश तक सीखता है। स्कूल  में जाते ही उसे थप्पड, डंडे, मार-मारकर उसे छुडाई जाती है।  जो आजादी पश्चात करोडो बच्चों को इस अत्याचार को झेलना पडता है। हमारे बच्चों को अपनी जडों से काटने का यह प्रजातन्त्र में किया जाने वाला सरकारी षडयंत्र है। जो विश्व में दूसरा नहीं होगा। यह मानवाधिकारों का हनन है। जो मानवाधिकार आयोग, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका के होते हुए हो रहे है। इसका कारण जो लोग इन स्थानों पर मुख्य पदों पर है। वो इस सत्य से आंख मुंदे है। या फिर अपनी जडो से इतने कट गए है कि जिनकी संवेदना खत्म हो अगई है। हमारे शिक्षा मंत्री का ब्यान भास्कर 9 अप्रेल 2010 में पढा कि "राज्य में हिन्दी ही मातॄभाषा है।" यह बयान हास्यास्पद तो है। ही इसके साथ शर्मनाक भी है।, जहाँ के शिक्षामंत्री को यह भी पता नही कि इस प्रदेश की मातृभाषा क्या है। जिन्हें प्रदेश के शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग का कार्यभार सौंपा है। यह चिन्ता व चिन्तन का गंभीर विषय है। मास्टर भंवरलाल उस पीढी के व्यक्ति है। जिन्होंने स्कूल में डंडे खा खाकर अपनी मातृभाषा छोडी थी उस मार का आतंक इतना है। कि वे उस सत्य को सिरे से नकार रहे हैं कि हमारी मातृभाषा क्या है। वे अपनी मातृभाषा राजस्थानी कहने से कतराते है। शिक्षामंत्री जब पैदा हुए तब जिस भाषा में महिलाओं ने जच्चा के गीत हालरिया  (पालना गीत) शादी में जान चढाई से पूर्व उनकी मां ने जब दूध को नही लजाने की सीख दी एवं प्रतीक रूप से स्तनपान कराया तब जो गीत एवं भाव प्रवाह पैदा हुआ, पीठी फेरे इत्यादि संस्कारों एवं सभी त्यौहारों पर गाए जाने वाले संस्कार गीतों एवं पीढी पीढी के मातृ संस्कारों की भाषा ही पीला  (ओढना) जो उनके जन्म पर ओढा था, जो उनके पिता, दादा जी ने जो साफा बांधा था उसकी मातृभाव संस्कार भाषा क्या थी। संस्कारों एवं समाज में महत्वपूर्ण पदों पर जडकाटिया बुद्धिजीवी आ जाते है। तब ऐसी दुर्गति होती है।  प्रदेशवासी इस बयान से गंभीर रूप से आहत हुए है। प्रदेश के संस्कति धर्मियों के मन में बार-बार सवाल उठ रहा है। कि आजादी का अर्थ क्या हमारे लोगों में हीनता का भाव पैदा कर जडों से काटना है। जो ऐसी आजादी का क्या औचित्य है।

अनिवार्य एवं मुक्त शिक्षा कानून में प्रावधान है। कि प्राथमिक कक्षाओं तक बच्चों को अनिवार्य रूप से मातृभाषा में पढाया जाए जो पूरी दुनिया में लागु है। राजस्थान इसका अपवाद है।  राजस्थान में राजस्थानी को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम तो क्या यहां तृतीय भाषा का दर्जा भी नहीं है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं प्रदेश के विश्वविद्यालयों मे ऐच्छिक विषय के रूप में अध्ययन अध्यापन व शोध का विषय है। राज्य में तृतीय भाषाओं की सूची में राजस्थानी के अलावा, सिंधी, संस्क़त, संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, उर्दु, मलयालम, तमिल इत्यादि है।  इसी तरह प्रदेश में भाषाई अल्प संख्यकों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देने के लिए मान्यता प्राप्त उर्दू, सिंधी, पंजाबी, अल्पसंख्यक भाषाओं के कुल 1195 विद्यालय है। शिक्षा विभाग की रिपार्ट के अनुसार वर्ष 2007-08 के मुताबिक प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर के इन विद्यालयों में रा ्‌य में उर्दू अल्पसंख्यकों के 654 विद्यालय है। जिनमें 60586 बच्चें पढ रहे है। इसी प्रकार सिंधी के 38 स्कूलों में 2198 बच्चे नामांकित है। जबकि पंजाबी भाषाई अल्पसंख्यकों के 503 विद्यालयों में 42559 बच्चे अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक आकांक्षाओं के अनुरूप शिक्षा ले रहे है। उल्लेखनीय है कि भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा को बढावा देने के लिए गुजराल समिति के अनुसार राज्य के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम 40 प्राथमिक विद्यालय की एक कक्षा में 10 छात्र छात्रा अपनी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक होने पर उनको शिक्षा देने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।  गौरतलब है कि राज्य में एक भी विद्यालय राजस्थानी का नही है एस.आई.ई.आर.टी. जो पाठयक्रम निर्माण करती है वहां राजस्थानी के व्याख्याता को दूसरे कार्यो में लगाकर इस विचार बीज को पनपने से पूर्व समाप्त किया गया। प्रदेश के विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में राजस्थानी के व्याख्याता, सहायक आचार्य, आचार्य, के पद रिक्त है इस कारण राजस्थानी अध्ययन, अध्यापन, शोध अत्यंत प्रभावित हो रहे है।

अनिवार्य शिक्षा कानून एवं अब तक की देश विदेश की शिक्षा समितियों की अवधारणा के अनुसार प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा की अनिवार्यता के प्रावधान सिफारिशों का आधार बन नियम बने है। परन्तु राजस्थान में सरकार नीति एवं शिक्षामंत्री की सोच से अमल में आऐंगे यह भविष्य के गर्भ में है।

प्रदेश महामंत्री
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा
मान्यता संघर्ष समिति
राजस्थान

प्रभारी
राजस्थानी विभाग
जनार्दन राय नागर राजस्थान
विद्यापीठ वि.वि. उदयपुर
मो. 9829566084

 


राजस्थानी भाषा ने मान्यता
(विशेष संवाददाता)
संदर्भ - जलते दीप
जयपुर, गुरुवार 14 दिसम्बर, 2006

नई दिल्ली, 13 दिसम्बर। करोडो राजस्थानियां री मातृभाषा 'राजस्थानी' ने संविधान री आठवीं अनुसूची में जोडणे ऱी गत कई दशका सु चलती आई मांग अबे पूरी होणे जा रई है। केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री प्रकाश जयसवाल द्वारा एक टीवी चैनल ने दी गई जाणकारी रे अनुसार केन्द्र सरकार राजस्थानी अर भोजपुरी ने संविधान री अनुसूची में जोडणे रो सिद्धान्तत: फैसलो कर लियो है। बे बताया कि लम्बे अरसे सु सांसदा सु इणरी मांग करी जा रई है। गत सरकार सु गठित सीताकांत महापात्र कमेटी री रिपोर्ट रे आधार पर भी इण दोनु भाषावां ने सम्मिलित करणे रो मार्ग प्रशस्त हुयो है। बे बताया कि अधिकतर मंत्रालया सु इण संबंध में मांगी गई रिपोर्ट मिलगी है अर जरूरी प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। इणसु पेला आज राज्य सभा में सांसद अभिषेक मनु सिंघवी रे लिखित प्रश्न रे उत्तर में केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री जायसवालजी बतायो कि राजस्थान विधानसभा सु राजस्थानी ने संविधान री आठवीं अनुसूची में जोडणे रो सर्वसम्मति सु पारित संकल्प केन्द्र ने मिलग्यो हो इण पर गंभीरता सु विचार करियो जा रियो है। केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री जायसवालजी द्वारा राजस्थानी अर भोजपुरी ने आठवीं अनुसुची में सामिल करणे रे केन्द्र सरकार रे फैसले री जाणकारी रे बाद राजस्थान री जनता अर पूरे देश में फैलिया प्रवासी राजस्थानियां में खुशी री लहर छा गई। जोधपुर संवाददाता रे अनुसार गत 26 सालां सु राजस्थानी भाष रो प्रतिनिधित्व कर रई पारिवारिक मासिक पत्रिका 'मांणक' रा संपादक पदम मेहता केन्द्र सरकार रे इण फैसले पर खुशी व्यक्त करी है।

विधानसभा मायं राज.भाषा नै संविधानिक मान्यता रो संकल्प पारित
(संदर्भ- माणक पत्रिका, अंक सितम्बर-2003, रचनाकार- पदम मेहता)

दस करोड सूं बेसी राजस्थानियंा सारु 25 अगस्त, 2003 रो दिन घणौ अैतिहासिक अर गरबजोग रैयौ। ग्यारवीं राजस्थान विधानसभा रै आखरी सत्र रै आखरी दिन रो आखरी प्रस्ताव संकळप रुप सूं पारित कर'र राजस्थान विधानसभा सरब सम्मति सूं मांग करी के राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं पानडी में सामळ करी जावै। राज्य विधानसभा सूं औ संकळप पारित हुयां संविधान रा प्रावधान मुजब अबै केन्द्र सरकार राजस्थानी भाषा नै आठवीं सूची में सामल करवा वास्तै संसद सूं संविधान संशोधन पारित करवाय'र मान्यता प्रदान कर सकैला। राजस्थान विधानसभा जकौ अैतिहासिक संकळप पारित करयौ उण रौ राजस्थानी उल्थौ इण भांत है:

संकळ्प

"राजस्थानी विधानसभा रा सगळा सदस्य सरब सम्मति सूं औ संकळप पारित करै है के राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करी जावै। राजस्थानी भाषा में विभिन्न जिलां मांय बोलीजण वाळी भाषा या बोलियां जथा-ब्रजभाषा, हाडौती, बागडी, ढूंढाडी, मेवाडी मेवाती, मारवाडी, माळवी, शेखावाटी इत्याद सामळ है।"

प्रदेश री दूजी राजभाषा बणावण अर राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं सूची में सामळ करण सारू लारला पांच दसक सूं समै-समै माथे मांग होवती रैयी है। शेरे-राजस्थान स्व.जयनारायण जी व्यास तो बरस 1944 में टंडन समिति नै ज्ञापन सूंपियौ हौ के आजादी पछै संविधान बणावती वळा दूजी-दूजी भाषावां नै मान्यता देवण री वेळा 'राजस्थानी' नै ई अवस मान्यता देवै। पण आजादी मिल्या पछै त्याग अर बलिदान रा प्रतीक राजस्थानियां हिन्दी नै राष्ट्रभाषा बणावण वास्तै इण मांग माथै घणौ जोर नीं दियौ। देसी रियासता रा राजा-महाराजा ई आप आप्रा हितां अर प्रिवीपर्स में उळझियोडा रैया अर राजस्थानी नै राजभाषा रै वास्तै कोई शर्त नीं राखी। आ बात ध्यान राखण जोग है के राष्ट्रभाषा हिन्दी होवै या हिन्दोस्तानी इण बात माथै कांग्रेस आपस में बंटयोडी ही। उण वेळा हिन्दी खडी बोली रै नांव सूं पिछाणी जती ही, जदकै ज्यादातर कांग्रेसी नेता 'हिन्दोस्तानी' नै राष्ट्रभाषा बणावणी चावता हा। पण सेठ गोविन्द दास जी रै अथक प्रयासां सूं हिन्दी बाबत माहौल बण्यौ अर कांग्रेस कार्य समिति में गुप्त मतदान में मात्र अेक वोट सूं हिन्दी नै राष्ट्रभाषा बणावण रौ निरणै हुयौ। (संदर्भ-सेठ गोविन्ददास जी री जीवणी: लेखक पद्‌मा बिनानी)

संविधान निर्मात्री सभा में राजभाषावां बाबत ई घणकरी बहस होयी अर अनुच्छेद 351 रै साथै आठवीं अनुसूची में उण वखत 14 भाषावां नै सामळ कर्‌यौ गयौ। बरस 1967 मांय सिंधी, बरस 1992 में कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली नै सामळ कर्‌यौ गयौ। इण तरै अबार 18 भाषावां आठवीं अनुसूनी मसम्मिलित है। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी सूं मान्यता प्राप्त कुल 22 भाषावां में आं 18 भाषावा रै अलावा 3 भारतीय भाषावां राजस्थानी, मैथिली अर डोगरी इणमें सामळ होवणी बाकी है, जदकै 22 वीं भाषा अंगरेजी है जकी तौ पैला सूं ई राष्ट्रभाषा हिंदी सूं ई बेसी राजकाज में मजबूत हुयोडी है।

राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं अनुसूची में सामळ करण रै वास्तै समै-समै माथै संसद अर राजस्थान विधानसभा में मामलौ उठाईजतौ रैयौ। चावा विधिवेत्ता डॉ.लक्ष्मील्लजी सिंघवी 1962 जद जोधपुर सूं सांसद चुणीज'र लोकसभा में पुग्या तौ राजस्थानी नै मानता री बात उठायी। बर स 1969-70 में बीकानेर रा सांसद डॉ.करणीसिंहजी ई इण बाबत संसद में आवाज उठायी। पद्‌मश्री लक्ष्मीकुमारी चूंडावत राज्यसभा अर राजस्थान विधान विधानसभा दोन्यूं में प्रयास कर्‌या। आं रै अलावा ई केई सांसद अर विधायक संसद अर संसद अर राज्य विधानसभा में राजस्थानी सारू प्रयास करिया, जिणमें पूनमचंदजी विश्नोई खेतसिंहजी राठौड रौ नांव खास है।

म्हारा अग्रज 'दैनिक जलते दीप' रा संंस्थापक स्व.माणकसा मेहता राजस्थानी रै आंदोलण नै गति देवण सारू हफ्तावारी न्यारौ छापौ तीन दशक पैला राजस्थानी में सरू करियौ। 12 दिसंबर, 1975 नै उणां रै सरगवास पछै म्हैं पत्रकारिता में पूरी तरियां सक्रिय हुयग्यौ अर इणरै माध्यम सूं राजस्थानी रा आन्दोलन नै मजबूती देवण अर इणरै प्रचार-प्रसार खातर वां रा नाम सूं पारिवारिक मासिक 'माणक' रौ प्रकासण सरू करण रौ तेवडयौ। राजस्थानी भाषा रा हेताळु अर 'राजस्थान पत्रिका' रा संपादक कर्पूरचंदजी 'कुलिश' री सदारत में राजस्थानी लेखकां, साहित्यकारां अेक संगोष्ठी 1978 में राखीजी अर 'माणक' रौ प्रारूप तै करीज्यौ। 11 जनवरी, 1981 नै दिल्ली रा कांस्टीट्‌यूशन क्लब सभागार में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ.बलराम जी जाखड रै मुख्य आतिथ्य अर डॉ.लक्ष्मील्लजी सिंघवी री अध्यक्षता में आयोजित भव्य समारोह में 'माणक' रौ लोकार्पण हुयौ। जाखड सा अेक घंटा तांई राजस्थानी में भाषण देता कह्‌यौ के तीन सौ बरस पैला राजस्थान सूं उणां रा बडेरा पंजाब आयग्या, पण घर मांय राजस्थानी संस्कृति हाल जीवंत है। इण भाषा नै संविधानिक मानता मिलणी जरूरी है।

इण भात सरूआत सूं ई 'माणक' राजस्थानी भाषा नै मानता दिरावण सारू अेक सशक्त्त मंच रे रूप में प्रयास कर रैयौ है। लारला 23 बरसां मांय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिराजी, राजीवजी, नरसिम्हाराव, वाजपेयी समेत प्रदेस रा तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेवजी जोशी, शिवचरणजी माथुर, भैरोसिंह जी शेखावत अशोक जी गहलोत रै अलावा केई केंद्रिय अर प्रदेस मंत्री, राज्यपाल, राजनेता, चिंतक, साहित्यकार, उद्यमी प्रशासनिक अधिकारी इत्याद सूं आमी-सामी कर'र राजस्थानी भाषा नै मानता अर संरक्षण रै पक्ष में वातावरण बणावण रौ हरसंभव प्रयास करीज्यौ। सितंबर 1992 में जिण बखत नेपाली, कोंकणी, मणिपुरी नै आठवीं सूची में सामळ करण री चरचावां चालती ही, जोधपुर रा पूर्व नरेश गजसिंहजी री आगीवाणी में आखै राजस्थान सूं राजस्थान रा हेताळु दिल्ली मांय वोट क्लब माथे राखीज्यै धरणै में सामळ हुया अर राजस्थानी नै ई मानता री मांग करी ही, पण सफळता नीं मिळी।

राजस्थानी भाषा रा घणा हेताळु तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंहजी शेखावत रै कार्यकाल मांय 1989 सूं 1992 अर 1992 अर 1993 सूं 1998 तांई लगौलग प्रयास रै बावजूद राजस्थान विधानसभा मांय संकळप पारित नीं होय सक्यौ। विधानसभा में केई वळा चरचावां होयी। खुद भैरोसिंहजी शेखावत राजस्थानी भाषा री हिमायत करतां प्रस्ताव पास करावण रौ विसवास दिरायौ पण उणां रा भाग में इणरौ जस लिख्योडौ नीं हौ, सो हर वळा विधानसभा रा शोर-शराबा में आ बात दब'र रैयगी। साहित्य मनीषी कन्हैयालालजी सेठिया कलकत्तै में अर म्हैं विधानसभा मांय अेक दिन अेकण सागै उपवास राख्यौ। पाइंट ऑफ आर्डर रै रूप विधान-सभा म बुलाकीदासजी कल्ला औ मामलौ उठायौ। अेक घण्टा सूं बेसी चरचा होयी। मुख्यमंत्री भैरोसिंहजी शेखावत खुद हामी भरी पण बात पार नीं लागी।

दिसंबर, 1998 मांय अशोकजी गहलोत री आगीवाणी में कांग्रेसी सरकार बण्यां नुंवै सिरै सूं इण सारू प्रयास करीजता रैया। जैपुर में रैैली, धरणा, आंदोलन ई करीज्या जिणमें आखा राजस्थान रा राजस्थानी लिखारा, साहित्यकार अर हेताळु भाग लियौ। न्यारी-न्यारी ठौड माथै राजनेतावां रै माध्यम सूं मानीता मुख्यमंत्री अशोकजी गहलोत अर केन्द्र सरकार तांई इण बात नै पुगाई। 'माण्क' विधान सभा रै बारै अर विधानसभा रै मांय विधायकां सूं लगौलग सम्पर्क कर'र अर मुख्यमंत्रीजी सूं हर मौकै सीधी बतळावण कर'र राजस्थानी नै मानता खातर आथडतौ रैयौ। मुख्यमंत्री अशोकजी अबार जुलाई रे पैलै हफ्तै अन्तर्राष्ट्रीय राजस्थानी सम्मेलन में भाग लेवण न्यूयॉर्क पूग्या तौ वठै सगळौ राजस्थानी समाज आपरी संस्कृति नै जीवती राखण खातर राजस्थानी नै संरक्षण अर मानता री बात कैयी। 'राजस्थान असोसिअेशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका' (राना) कानी सूं प्रस्ताव पारित कर'र राजस्थानी संविधानिक मानता अर प्रदेस में दूजी राजभाषा रौ दरजौ देवण री मांग करी।

म्हारै सारू आ घणी असंजोग बात के अशोकजी गहलोत जद सामाजिक कार्यकर्त्ता हा अर राजनीति में नीं आया, तद सूं ई वां सूं आत्मीय संबंध रैयौ। स्व. माणकसा री याद में थरपित 'माण्क अलंकरण' रा 1982 सूं हर बरस आयोजित कार्यक्रम में वै मौजूद रैया अर हर वळा जद राजस्थानी भाषा री बात सामी आवती, इणरौ नीं सिरफ समर्थन बल्कै खुद पैरवी करता। बरस 1998 में मुख्यमंत्री बण्या पछै लगौलगा वां सूं संपर्क अर प्रयासां रै बावजूद राजस्थानी री मानता रौ सवाल जस रौ तस आखरी विधानसभा तांई कायम हौ। भगवान री इच्छा ही, सो इण आखरी सत्र मांय भरपूर प्रयास सिगळा कानी सूं करीज्या। सत्र रौ आखरी दिन सोमवार 25 अगस्त हौ। इण सूं 5 दिन पैला जैपुर में पडाव कर'र 22 अगस्त नै चावा विधिवेत्ता मरुधर मृदुल री अध्यक्षता में प्रेस कांफ्रेंस राखीजी जिणमें घणकरा साहित्यकार मौजूद हुय'र इण अंतिम सत्र में राजस्थानी नै मानता री मुख्यमंत्री सूं मांग करी। शनिवार रै दिन जैपुररा अखबारां में समाचार छप्या।

जोगमोग डॉ.मनोहर प्रभाकरजी रौ संदेश मिल्यौ के नटवरसिंहजी जैपुर में आयोडा है। म्हैं वां सूं मुलाकात कर'र कह्‌यौ के आप राजस्थानी नै समर्थन रौ वादौ करियौ, इणरी व्यापक परिभाषा में ब्रजभाषा ई सम्मिलित है। मुख्यमंत्री माथै प्रभाव न्हाखता विधानसभा सूं प्रस्ताव पारित करावौ। नटवरसिंहज मुळ्कता थका म्हारै ज्ञापन माथै मुख्यमंत्रीजी रै नांव मान्यता रौ समर्थन करतां कार्यवाही रौ लिख्यौ। म्हैं मुख्यमंत्री निवास पूग्यौ तौ ठा पडी के संभागवार विधायका री बैठकां मुख्यमंत्रीजी लेय रैया है। इण वास्ते अेक मिनट ई मिलणौ संभव कोनी। शिक्षामंत्री बी.डी.कल्लाजी सूं बंतळ करी, पण वै ई असमर्थ हा। इण तरै मुख्यमंत्री निवास मांय रात 22 बजगी। म्हनै 12 बज्यां री ट्रेन सूं दिल्ली जावणौ हौ। दूजै दिन दिल्ली मांय लखोटिया पुरस्कार रा निर्णायक मंडळ री बैठक में पूग्यौ हौ सेवट मुख्यमंत्री जी रा विशेषाधिकारी धीरजजी श्रीवास्तव नै औ काम सूंप्यौ के अशोकजी चायै कित्ती ई बज्यां आ बैठका सूं निवडै, म्हारा अै कागद अर संलग्नक उणां नै अवस बंचावणा है। भगवान री इच्छा ही म्हैं म्हारा निवेदन में नटवरसिंह जी वाळौ कागद, 'माण्क' रो नीतिपरक संबोधन काव्य' वाळौ अंक जिण्में राजिया रा इण दोहा माथै लालस्याही सूं निसाण लगायौ :

हीमत कीमत होय,
बिन हीमत कीमत नहीं।
करै न आदर कोय,
रद कागद ज्यूं राजिया।।

इणरै अलावा म्हारा निवेदन में सगळी बातां माडता लिख्यौ के भगवान श्री कृष्ण गीता रा 11वां अध्याय में अर्जुन ने कैवै-"हे अरजुण, थूं भ्रम में मत पड। सगळा काम ईश्वर री इंछा मुजब होवै। थूं निमित्त बण जा अर जस रौ भागी बण।" आं लेणां माथै ई लाल स्याही सूं निसाण लगाय'र अेक दूजी परची माथै मांडयौ के शिक्षामंत्री कल्लाजी अर विधि मंत्री खेतसिंहजी कनै सारी त्यारी है जे आप हामी भर'र उण नै आदेश फरमावौ तौ सोमवार ने आखरी दिन मानता रौ संकल्प विधानसभा सूं पारित हुय सकै।

भगवान री मंशा ही सो दिल्ली पूग्यां सूबै सात बज्यां मुख्यमंत्री निवास सूं मोबाइल माथै फोन आयौ के मुख्यमंत्री जी बात करैला। म्हनै अचूंभौ हुयौ। अशोकजी ओलभौ दियौ के-"दिल्ली कीकर गय परा, काम करावणौ कोनी कांई। म्हैं क्ल्लाजी ने कैय दियौ है। तत्काल पाछा आय'र वां सूं समन्वय करौ। सोमवार नै काम पार लगावणौ है।" म्हैं वां रौ घणौ आभार जतावता कहयौ के जैपुर पूग रैयौ हूं। इण पछे शिक्षामंत्रीजी रौ निरदेस मिलग्यौ है। शिक्षा सचिव जुत्शीजी नै बुलाय लियौ है। अर कालै औ सपनौ साकार हुय जासी।

लखोटिया पुरस्कार निर्णायक मंडल री बैठक में भाग लेय'र सिंझ्या रै जैपुर पूग'र कल्ला जी सूं भेंट करी। प्रस्ताव री भाषा त्यार होयी। दूजै दिन सोमवार नै सुबै इण माथै मंत्रिमंडल मांय चरचा होयी। शिक्षामंत्री कल्ला जी भरतपुर, अलवर, हाडौती छेत्र रा विधायकां सूं ई बंतळ करी। विधानसभा 11 बज्यां सरू होयी उण सूं पैला उपाध्यक्ष देवेंद्रसिंह जी म्हनै बधाई देतां कहयौ के आज आपरौ राजस्थानी वाळौ काम हुय रैयौ है। मुख्यमंत्री जी सूं मिल'र वां सूं ई चरचा करी। पछै पद्‌मश्री लक्ष्मीकुमारी जी चूंडावत सूं सम्पर्क कर'र वां नै सिंझया रा विधानसभा आवण अर संकळप पारित हौवतौ खुद री निजरा सूं देखण री अरज करी। वै 4 बज्या पधारग्या। विधानसभा 6 बज्यां तांई सारौ विधाई काम पूरौ करियौ। उपाध्यक्षजी घोषणा करी के अबै शिक्षामंत्री सरकारी संकळप राखैला। घोषणा हुवतां ई बुलाकी दास जी कल्ला ऊपर मुजब संकळप बांचियौ पछै कहयौ के जका पक्ष में हुवै 'हा' कैवै अर विपक्ष में 'ना'। जोर सूं हां री गूंज हुया उपाध्यक्षजी घोषणा करी के संकळप सरबसम्मति सूं पारित हुयग्यौ।

इण पछै म्हैं अर लक्ष्मीकुमारी जी चूंडावत मुख्यमंत्रीजी सूं पाछा मिल्या अर वां रौ घणौ आभार जतावतां सै सूं पैला उणां री राज्स्थानी रा मनीषी कन्हैयालाल जी सेठियाजी सूं कलकत्तै बत कराई। सेठियाजी आसिरवाद दियौ। इण भांत मुख्यमंत्रीजी अशोकजी गहलोत इण संकळप नै पारित करवाय'र जस रा भागी बण्या। वै विसवास दिरायौ के इण संकळप पछै अबै केंद्र सूं आठवीं सूची में सामळ करावण अर राजस्थान में दूजी राजभाषा री मानता रौ प्रयास कियौ जासी।

अपनी मातृ भाषा से विमुखता क्यों?-
(संदर्भ - राजस्थान पत्रिका, रचनाकार: राजू पारीक उगाणी, मनोज कुमार, शहर: गुवहाटी)

राजस्थान के इतिहास के पन्नों को अगर पलट कर देखे तो हर पृष्ठ को स्वर्णिम रंग देने में जहां राजस्थान के रहने वालो की भूमिका रही है उसी तर्ज पर राजस्थान से बाहर रहने वाले प्रवासी राजस्थानियो का बेहतर योगदान रहा है, चाहे वो साहित्य, कला का क्षेत्र हो या अर्थ को दर्शाने वाले वास्तु कला के बेजोड नमूने। राजस्थान स्थित भव्य हवेलियों को देखकर पर्यटक बार-बार आने को आतुर होते है, उन हवेलियों के पीछे, प्रवासी राजस्थानियों की मेहनत छिपी हुई है जहां वास्तुकला में आर्थिक योगदान दिया वहीं अपनी कलम से राजस्थानी साहित्य को जिंदा रखने में अपनी मानसिक कौशलता को उडेल कर रख दिया।

जब भी कोई राजस्थानी अपनी बचपन की गलियों से निकल कर दूर सदुर प्रांत में आया, तो उसका प्रेम उस बचपन की मिट्टी से और ज्यादा बढ गया, व्यापारिक गुणो में निपुण कहा जाने वाला रेगिस्तानी धरती का पुत्र विश्व के कोने-कोने मेंें जा बसा, वो जहां भी पहुंचा, वहां अपने प्रेम को बढाने के साथ-साथ वहां के लोगों के बीच आपसी प्रेम सौहार्द को बढाया वहीं उस मिट्टी के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया, जब-जब उस मिट्टी पर प्राकृतिक आपदाए आई तब वो सबसे पहले आगे आया। राज्य के चहुमुखी विकास में आर्थिक योगदान देकर जहां राज्य को आर्थिक सुदृढता प्रदान की वही राजनैतिक जैसी कठिन डगर पर अपना कदम बढाया तो साहित्य सर्जन में भी पीछे नहीं रहा। अपनी कलम से इतिहास के पन्नो को पोतता रहा अमन और प्रेम की प्राथमिकता देने वाला राजस्थानी समुदाय यहां की मिट्टी से जुडने के बावजूद अपनी जन्म दावनि रेतीली जमीन से व उसकी मायड भाषा से जुडा रहा, मगर पिछले कुछ सालों से, पश्चिम की तेज आंधी के सामने, वो भी बिखरने से नहीं रहा और अपनी संस्कृति जो विरासत में पाई थी उसे दरकिनार कर पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड में शामिल हो गया, पाश्चात्य तूफान के सामने, पारंपरिक वेशभूषा व सुसंस्कार ही लोप नहीं हुए बल्कि बवंडर के धूल कणों से मातृभाषा राजस्थानी को बडी क्षति हुई। राष्ट्रभाषा हिंदी की तरह ही राजस्थानी भाषा भी भारत की सबसे पुरातन भाषा है जिसका शब्द कोश सबसे बडा है, देवनागरी जैसी लिपि को जन्म देने वाली पच्चीस सौ साल पुरानी राजस्थानी भाषा से उसके अपने ही दूर होते जा रहे है-

भारत सरकार ने इस उदासीनता का फायदा उठाया और पिछले साठ साल से मान्यता की हकदार राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में अब तक शामिल नहीं किया विविधता से भरे उस राज्य की आठ करोड जनता का वो सपना साकार तब तक नहीं होगा। जब तक राजस्थान के साथ-साथ प्रवासी राजस्थानियों को भी (अपनी मातृभाषा के समान हेतु) आगे आना होगा, मैं मानता हूं हम अपनी मातृभाषा राष्ट्रभाषा हिंदी को भी मानते है। हम राष्ट्रभाषा हिंदी का उतना ही सम्मान करते है जितना हमारे देश को वह सर्वप्रिय है। मगर उससे भी प्रिय है हमारा वो राज्य उस राज्य ए जुडी वो आवाज जो हम सबने अपनी मां की गौद से मचलकर पहली बार किसी को संबोधन करने का प्रयास किया था वो ही तो है मातृभाषा। लेकिन विडम्बना मैंने निजी तौर पर हमारे समाज के लोगों से पत्रों द्वारा व प्रत्यक्ष रूप से जब संपर्क किया तो उनको असहाय पाया मेरे पत्रो का प्रत्युतर मुझे नहीं मिला और नहीं संतुष्टि भरा मौखिक जवाब, राजस्थानी भाषा व उसके साहित्य के प्रति उदासीनता के पीछे आखिर कौन सी वजह हो सकती है जिसके कारण आज विश्व की आर्थिक इमारत का मुख्य स्तम्भ कहां जाने वाला राजस्थानी आज अपनी ही मातृभाषा से विमुख होता जा रहा है।

 

राजस्थानी ने लेर भाजपा री नारेबाजी
(संदर्भ : राजस्थान पत्रिका)

नई दिल्ली, 26 फरवरी। भारतीय जनता पार्टी रे राजस्थान रा सांसदा राजस्थानी भाषा ने संविधान री आठवीं अनुसूची मांय शामिल कराणे री मांग रे वास्ते गुरूवार सुबह संसद भवन परिसर मांय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी री प्रतिमा रे सामने प्रर्दशन अर नारेबाजी करी।प्रर्दशन अर नारेबाजी मांय राजस्थान प्रदेश भाजपा रा अध्यक्ष ओमप्रकाश जी माथुर, डॉ. ज्ञानप्रकाश जी पिलानिया, गिरधारीलाल जी भार्गव, रासासिंह जी रावत समेत कई सांसद शामिल हुया।बाद में पिलानिया संवाददाताओ ने कहियो कि 6 करोड सु ज्यादा जनसंख्या वाळे राजस्थान री मायड भाषा राजस्थानी ने संविधान री आठवीं अनुसूची मांय शामिल कराणे रे वास्ते मांग उठती रई है अर सरकार भी इ मांग ने पूरी करणे रो आश्वासन दीदो पण केन्द्र री संयुक्त्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार वादा खिलाफी करी हैं।आठवीं अनुसूचीं मांय शामिल कराणे संबंधी सब मानदंड राजस्थानी भाषा पूरी करे है पण सरकार इण भाषा री उपेक्षा ही करी है। वे कह्यो कि देश री प्राचीन भाषाओ मांय राजस्थानी खास स्थान राखे है अर इणमें राजस्थानी साहित्य भी उपलब्ध है।

इण प्रदेश रा कई विद्वान, लेखक अर कवि आपरी रचनावां लेख अर कवितावां रे माध्यम सु इने समृद्ध बणायो है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल भी सदन मांय राजस्थानी भाषा ने आठवीं अनुसूचीं मांय शामिल करणे रो आश्वासान दीदो पण संप्रग सरकार आपरो यो वादो नीं निभार प्रदेश री जनता रे साथे वादा खिलाफी करी है।

प्रधानमंत्री सूं सवाल - लक्ष्मण दान कविया

राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवी अनुसूची में जोड़ौ

राजस्थान री पिछली विधानसभा में सर्वसम्मति सूं राजस्थानी भाषा नै संविधान री आठवीं अनुसूची में शामिल कराया वास्तै एक प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार में भेजियौ।

पिछली केन्द्र सरकार करौड़ां राजस्थानियां री भावना, पिछांण अर पेट सूं जुड़िया थका इण सवाल री अणदेखी कर अटकाय दियौ। इण तरै केन्द्र सरकार राजस्थानी रा इण प्रस्ताव नै अटकाय प्रजातांत्रिक मूल्यां री अणदेखी करी है। भारत रा संविधान रा त्रिभाषा सुत्र री अणदेखी करी है। इण कारण करोड़ों राजस्थानी लोगो रा प्रधानमंत्री सूं एक सवाल है।

राजस्थानी भाषा नै मान्यता नीं देयर-

कांई राजस्थान रा मोट्यारां नै बेरोजगारी री लाय में बाळ देवणौ चावै?
कांई राजस्थान री नौकरियां दूजा प्रान्तां रा लोगां नै ईज देवणौ चावौ?
कांई राजस्थान रा रैवासियां नैं अणपढ राखणौ चावौ?
कांई राजस्थान संस्कृति रौ नास करणौ चावौ?
कांई दुनिया मांय सूं राजस्थान री पिछांण मेटणौ चावौ?
कांई राजस्थान रा लोक देवी देवतावां अर संतां रो संदेश मिटावणौ चावौ?
कांई राजस्थान रा मजूरां करसां री भावनावां दबावणौ चावौ?
कांई हिन्दी साहित्य री पिछांण मिटावणौ चावौ?

ध्यान राखणौ चावै
भाषा विज्ञान की दृष्टि सूं राजस्थानी समृद्ध भाषा है। राजस्थानी 12 करोड़ राजस्थानियां री मायड़ भाषा है, इणरौ 2500 बरसां जूनो इतिहास है। राजस्थनी लिपि मुड़िया सूं आधुनिक देवनागरी अर दूजी कई भारतीय भाषावां री लिपियां बणी है, इणरौ अपार साहित भण्डार हस्तलिखित रूप में है। हिन्दी रै निर्माण में राजस्थानी रौ बहोत बड़ौ योगदान है हिन्दी रै आदिकाल मध्यकाल रौ म्हैल पूरा राजस्थानी रा साहित माथै ईज खड़ौ है। राजस्थानी री आपरी व्याकरण है। भारत में तौ कांई पाकिस्तान में भी राजस्थानी व्याकरण राजस्थानी कायदो नाम सूं चलण में है। राजस्थान रौ शब्दकोष दुनियां रा मोटा शब्दकोषों में गिणीजै। राजस्थानी ने 8वीं अनुसूची में जोड़वा सूं मिलवा वाला फायदा-

बेरोजगारां मैं घणा रोजगार मिलैला।
आर.ए.एस., आई.ए.एस., आ.पी.एस., सी.आई., बी.एड., बीजी प्रतियोगी परीक्षावां मांय राजस्थान रा युकां नै पैली ठौड़ मिलैला अर राजस्थान रै बारै सूं आवा वालां माथै रोक लागैला।
आपांणी संस्कृति कला री पिछाण संसार में सवाई बढैला।
राज री नौकरियां में राजस्थानी भाषा री जाणकारी जरूरी व्हैला।
स्कूलां कालेजां में राजस्थानी री पढ़ाई जरूरी व्हैला।
कोट कचेड़िया में आपांनै राजस्थानी में बोलवा रौ अर लिखापढ़ी करवा रौ अधिकार मिलैला।
राजस्थानी भाषा रै प्रचार प्रसार सारू सरकार सूं घणौ बजट मिलैला।
राजस्थानी दूजा प्रांतां में तीजी भाषा बण सकैला जिणसूं राजस्थान रा लोगों रै रोजगार रा नवा रास्ता खुलैला।
राजस्थान में राजस्थानी जगतपौसाल (विश्वविद्यालय) बण सकैला।
दूजा प्रांतां में राजस्थानी अकादमियां बण सकैला जो केई पुरस्कार देवैला अर कई किताबां छपैला।
आपांरा जनप्रतिनिधी पंचायत सूं लेयर संसद तक आपांरी भाषा में बोल सकैला ज्यूं दूजा प्रान्तां में व्है है।राजस्थानी री मान्याता सूं हिन्दी रौ विकास व्हैला। राजस्थानी भाषा रूपी शरीर रा मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी, मेवाती, हाड़ौती, वागड़ी, भीली, मारवाड़ी, ब्रज, इत्याद बोलियां, इणरा अंग है। डिंगल अर पिंगल राजस्थानी कविता री शैलियां है, जकौ इणरा गैणा है। बोलियां तो विश्व री हरेक भाषा में है। ज्यूं

बारै कोसां बोली बदलै, वन फल पलटै पाकां।
बरस बतीसां जोवन पलटै, लखण नीं पलटै लाखां।।मूल लक्षण एक ईज व्हिया करै। शताब्दियाँ सूं लिखिजियौ थकौ साहित इणरौ उदाहरण है। ज्यूं सेठिया जी कह्यौ-
मेवाड़ी, ढूंढाडी साथै, हाड़ौती मरूवाणी।
सगलां सूं मिल बणी, वा भाषा राजस्थानी।।
ओलख आपांरीह, राजस्थानी राखसी।
आ तुलसां क्यारीह, भाटां सूं पूछौ भलां।।
डॉ. राजेन्द्र बारहठ

अनुसूची वा आठवीं, नह ओपी अज लग्ग।
राजस्थानी जोड़नै, कर दैणी झगमग्ग।।
हिम्मत सिंह उज्जवल

राजस्थानी रा प्रस्ताव री प्रधानमंत्री री तरफ सूं हुई अणदेखी राजस्थान रा लाडला सपूत जकौ देशहित वास्तै आपरी जान हथेली पर राखे वणां शहीद सपूतां, रणबांकुरां, संता, भक्तां, सतियां रै संदैश रे कर्म अर त्याग री अणदेखी है। कुछेक दूजा प्रान्तां सूं आया लोग अठेरी रोटी खायर्या है पण मन सूं राजस्थानी नीं व्हिया है। राजस्थान रा लोगां में फूट नांखवा री कोसीसां करै। ऐ नुगरा लोग जिणमें खावै विणरै छेद करै। यै राजस्थानी विरोधी राजस्थान रै विकास रा विरोधी है।

खाली घड़ री कद हुवै, चैरे बिना पिछांण।
मायड़ भाषा रै बिना, क्यांरौ राजस्थान।।
राजनीति री दीठ सुं, बणम्यो राजस्थान।
पण निज भाषा रै बिना, ओ लागै निष्प्राणं।।
भाषा है संजीवणी, जे कोई व्है हड़मान।
लावौ उठ बैछो हुवै, लिछमाण राजस्थान।।
हुवै नही जिण देसड़े, मां भाषा रौ मांन।
कियां पाय वो देसड़ो, परदेसां सनमान।।
केय दो आ डंके री चोट, राजस्थानी पर मिलसी वोट

मांग्या मानता कठै मिले? संघर्ष करणो पड़ैला, प्रदेश री जनता नै जागणौ पड़सी। लुगायां मोट्यारा बालक करसा, मजूर, सगलां नै आपांरी माता राजस्थानी रा मान नै बचावा वास्तै नूंतो है। आपारी मायड़ भाषा राजस्थानी नै संविधान में ठावी-ठौड़ दिरायर इणरौ राजतिलक करणौ है।

राज.भाषा प्रसार संस्थान - नागौर
(20 मुद्‌दा - मिठुराम ठाका, पतन पहाड़िया, लक्ष्णदान कविया)

  1. राजस्थानी भाषा ने संविधान री आठवीं सूची में ठावी ठौड़ दिरावण सारू सैजोर खिप्पत करणी। इण दीठ लोगों ने चेतार जनमत रे पाण अजे तांई चापलियोड़ा राजनेतावां री उंघ उड़ा अर उणा ने राजस्थानी रे पख्खे रार बिलु बणावण रा कलाप करना।
  2. राजस्थानी री चोखायां चावी कस्तां उण रे बधापे री कोशिश करणी।
  3. राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति री जुगां जुनी हेमाणी री साल संभाल रा जतन करणा।
  4. राष्ट्र भाषा हिन्दी सारू हेत अर राष्ट्र प्रेम री भावना जगावण रा जुगाड़ करणा।
  5. नित तर तर बधती आपाधापी, भ्रष्टाचार अर अपराध रो जम ने विरोध करणो।
  6. साहित्यकारों ने वाजब मान समनाम, देवण सारू अर बुढ़ा मांदा साहित्यकारों ने मदद सारू राज सरकार अर बीजी संस्थावां ने प्रेरणा देवणी।
  7. सरकारी खरीद (पोथियांरी) में राजस्थानी साहित्य ने पैल दिरावण रा जतन करणा।
  8. न्यारे-न्यारे सम्प्रदायां बिचे हेत-हेज ऐके इकठास अर भाइपे रा भाव पनपावण सारू जुतियोड़ा रेवणो।
  9. रेडियो-टीवी में राजस्थानी कार्यक्रमां ने कारगर बणावण सारू राज अर दिल्ली सरकार सूं लग्गू लिखा पढ़ी करणी अर ओपता कार्यक्रम सारू सुझाव पेस करणा।
  10. समाज री जड़ां खोखली करती कुरीतां अर नशे वाली चीजां रो विरोध करणो।
  11. राजस्थान विश्वविद्यालय में खुद मुख्तार राजस्थानी मेहकमे री थरपान करावण री कोशिश करणी।
  12. स्कूलां री छोटी कलासां में अनिवार्य रूप सूं राजस्थानी पढ़ावण सारू शिक्षा महकमा माथे दबाव नांखणओ।
  13. प्रवासी राजस्थानियां रे जान-माल री रूखाण सारू राज्य सरकार अर केन्द्र ने जागरूक करणा।
  14. मर्दम सुमारी (जनगणना) 2001 में मायड़ भासा आले खाने में राजस्थानी लिखण वाळा रो लेखो जोखो मांगणो।
  15. उर्दू, संस्कृत आदि रे साथ तीजी भाषा रे रूप में राजस्थानी पढ़ण री छूट दिरावणी।
  16. पांगली राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ने कारगर बणावण सारू इण रे सालीया बजट में बधोतरी करी जावे।
  17. राज्य सेवा परीक्षावां (आर.ए.एस., आर.पी. एस.) में राजस्थानी री जाणकारी जरूरी मानी जावे।
  18. राज के लोक सेवा आयोग में राजस्थानी साहित्य रा विद्वाना ने सदस्य बणाया जावे।
  19. स्कूलां में राजस्थानी व्याख्यातावां रा खाली पद जल्द भरिया जावे।
  20. बीजी भासावां रा जग चावा ग्रंथा रो राजस्थानी में उत्थो करायो जावे।

 

संयोजक, मिठुराम ठाका
ठिकाणो : किसान छात्रावास, नागौर

अध्यक्ष, पतन पहाड़िया
ठिकाणो : मु. पो. डेह, गांव खेंण, जिला नागौर

संस्थापक, लक्ष्णदान कविया
ठिकाणो : पो. मूण्डवा, जिला नागौर

राजस्थान री भाषा
(संदर्भ - इंडिया टुडे, 11 मार्च 2009, - रुबीना काज़ी)

कोटा : राजस्थानी भाषा ने संवैधानिक मान्यता दिराणे री मांग अेेक बार फेर साहित्यकारा रे वचे उठी है। इण हफ्ते शिक्षा नगरी कोटा मांय हुया दो दिन रे राजस्थानी भाषा आंचलिक रचनाकार समारोह मांय हाडौती समेत राज्य भर सु आया 100 सु ज्यादा रचनाकारां आ मांग उठाई। विणारी राय हि कि नेता वोट मांगणे रे वास्ते तो राजस्थानी भाषा बोलणे रा ढोंग रचावे है पण इने मान्यता दिलावा रे वास्ते कोई प्रयास नीं करे। प्रदेश रा पंचायती राज मंत्री भरत सिंह हाडौती भाषा पर खतरे री ओर इशारो करियो अर बतायो कि "आणे वाळे टेम मांय हाडौती रा गीत गाणे वाळा ढूंढणे सु भी नीं मिलेगा"। साहित्यकार रघुराज सिंह हाडा आंचलिक भाषायां रो सर्वे करवा र प्रतिनिधि राजस्थानी भाषाओ रो अेक मानक तय करणे री सख्त जरूरत जताई। हाडौती री राजस्थानी ख्याण्यां (कहाणियां) पर भी चर्चा वई। दूरदर्शन केन्द्र जयपुर रा पूर्व निदेशक नंद भारद्वाज, डॉ. सी. पी. देवल, दिनेश पंचाल, डॉ. शांति भारद्वाज अर कमलकांत समेत करीब एक दर्जन साहित्यकार सम्मानित भी व्हिया, समारोह मांय शामिल दूजा साहित्यकारां मांय डॉ.बद्रीप्रसाद पंचोली, ताऊ शेखावाटी, धन्नालाल सुमन अर मुकुटमणि राज प्रमुख हा।

 

राष्ट्रपतिजी को पत्र
(अर्जुनसिंह शेखावत-: अध्यक्ष, अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मानता संघर्ष समिति शाखा, पाली)

प्रतिष्ठा में,
महामहिम राष्ट्रपतिजी
भारत, नई दिल्ली

 

विषयः राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के क्रम में।

निवेदन है कि हमारी मातृभाषा राजस्थानी को देश की स्वतंत्रता के 55 वर्षों बाद भी संवैधानिक मान्यता नहीं दी गई और न हीं राज्य सरकार ने द्वितीय राजभाषा घोषित की है। उर्दू, सिंधी, नेपाल, कोंकाणी, मणिपुरी आदि 18 अन्य क्षेत्रीय भाषाएं संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित करे ली गई है जिसे मुठ्ठी पर लोग बोलते हैं और दस करोड़ लोगों की मातृभाषा राजस्थानी की उपेक्षा करना कहाँ तक न्यायसंगत है? जिस भाषा का भारतीय समुदाय में सातवां और विश्व समुदाय में सौलवा स्थान है। जिस भाषा का तीन लाख दस हजार शब्दों का विशाल शब्दकोष जो आठ भागों में प्रकाशित है, जो दुनिया का सबसे बड़ा कोश है, जो दस हजार पृष्टों में है। इस भाषा का कहावत कोश भी आठ भागों में है। जिसके दस व्याकरण हैं। 14वीं सदी में, जर्मन विद्वान कैलाग ने इसकी व्याकरण लिखी, इटली के भाषाविद् डॉ. टैस्सीटोरी ने 1916 में सुनितकुमार चार्टूज्या ने 1947 में शिकागो में प्रो. बहल ने 1980 में राजस्थानी की व्याकरण लिखी। इसके बाद रामकरण आसोपा, सीताराम लालस, विजयदान देथा आदि कई विद्वानों ने व्याकरण लिखी। जिसकी प्राचीन लिपि मुड़िया थी। जिस भाषा के बीस हजार ग्रंथ प्रकाशित और दो लाख प्राचीन पांडुलिपि अप्रकाशित पड़ी है। सैकड़ों विदेशी राजस्थानी भाषा साहित्य और संस्कृति पर शोध कर रहे है। भाषा के साथ वहां की संस्कृति और इतिहास जुड़ा रहता है। यह नई पीढ़ी के रोजी-रोटी से भी जुड़ा प्रश्न है। राजनेता इसके महत्व को समझ नहीं पा रहे है कि यह कितना महत्वपूर्ण अहम प्रश्न है? इतनी संपन्न एवं समर्थ भाषा को किसी भारतीय भाषा की टक्कर में कम नहीं है उस मान्यता नहीं देना, संविधान की आठवीं सूची में नही जोड़ना विचित्र विडम्बना है। यह भाषा किसी समय काठियावाड से प्रयाग तक बोली जाती थी।

जिसे भाषा विज्ञान का ज्ञान नहीं है वे कहते है कौनसी राजस्थानी? उन्हें पता नहीं कि ढूंढाडी, हाडौती, मारवाडी, मेवाती आदि राजस्थानी भाषा की बोलियां है। राजस्थानी में कुल 73 बोलिया है। यों हिन्दी को 43, मराठों की 65, तेलकु की 36, तमिल की 22, कन्नड की 32, कोंकणी की 16, बंगाली की 15, पंजाबी की 29, गुजराती की 27 बोलिया है। जिस भाषा की जितनी अधिक बोलियां होती है वह भाषा विज्ञान की दृष्टि में उतनी ही सभ्य एवं सामर्थ्य मानी जाती है। राजस्थानी कहावत है कि घ्बारह कोसां बोली बदलेङ राजनेता भाषा की परिभाषा नहीं जानते बोली को ही भाषा मानते है। भाषा का शब्द कोश है, व्याकरण है, लिपि है, साहित्य है उसे भाषा कहते है और जो केबल बोलचाल में चलती है उसे बोली कहती है। यह वह राजस्थानी है जिसमे मीरांस सूर्यमल, मिसण, बांकीदास व पृथ्वीराज राठौड़ आदि ने लिखा है। यह वह भाषा है जो हमारे होठों पर सर्वप्रथम जन्मी और मां के दूध के साथ रक्त में ललाई दे रही है। उसे भाषा न मानना आश्चर्य की बात है।

राष्ट्रभाषा हमारी एक आंख है, तो मातृभाषा दूसरी आंख, संस्कृत किसी को आती हो तो शिवजी का तीसरा ज्ञान नेत्र है पर अंग्रेजी तो चश्मा का स्थान ही ले सकती है, जिससे रंगीन दृष्टि तथा दूरदृष्टि बनती है। यों हिंदी राजस्थानी की बेटी है, गुजराती इसकी छोटी बहन है, जो पटरानी बन बैठी है। हिंदी का हम विरोध नहीं करते। हिंदी भारत माता के माथे की बिंदी है तो मातृभाषा भी हृदय का हार है। दोनों को सम्मान मिलना चाहिए।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, रविंद्रनाथ टैगोर, राहुल सांस्कृत्यायन, सुनितकुमार चाटुर्ज्या, काका केलेकर तथा मामा बरेरकर जैसे विश्व विख्यात विद्वान जिस भाषा को लोहा मान चुके है, जिन्होंने पुरजोर शब्दों में समर्थन किया है। इटालिय विद्वान एल.पी. टैस्सीटोरी ने तो राजस्थानी को अपनी मातृभाषा से भी अधिक प्यार दिया है और यहीं बस गए, यही मर गए। जार्ज अब्राहम ग्रियसन ने अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक सर्व ऑफ इंडिया में राजस्थानी को स्वतंत्र समूह की एक सशक्त भाषा स्वीकारा है।

भारत सरकार की ओर से हुई 1861 में जनगणना के आंकड़ों के अनुसार सिंधी बोलने वाले लोग 13,71,932 थे, नेपाली 10,21,102, कोंकणी के 13,52,363 और राजस्थानी के 1,49,33,016 लोग बोलने वाले थे। इस प्रकार सर्वाधिक राजस्थानी बोलने वालों की संख्या 1961 तक हर दस बरसों बाद की गई जनगणना में राजस्थानी भाषा को स्वतंत्र भाषा माना है परंतु इसके बाद हुई जनगणना में 1971, 1981, 1991 में राजस्थान को हिन्दी प्रांत मान कर हिन्दी में इस जनसंख्या को जोड़ दिया गया है। क्या यह राजस्थानी के साथ अन्याय नहीं है।

स्कार्टलैण्ड, वैल्स, आयरलैण्ड आदि देशों में अपनी सभी भाषाओं को ज्यों की त्यो रखा है। रूस में तो सभी क्षेत्रीय भाषाओं की रक्षा के साथ नई भाषाओं को पनपाने की पूरी स्वतंत्रता दे रखी है। इसी तरह भारतीयों को भी अधिकार देना होगा। राष्ट्रीयता के बहाने पर इन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता, उन्हें जीवित रखने को सभी सुविधाएं देनी होगी।

संविधान के दूसरे अध्याय का अनुच्छेद 345 के अनुसार प्रांत की विधानसभा कानून से, राज्य में प्रयोग होने वाली जनभाषा का उपयोग कर सकती है। अध्याय चार के अनुच्छे 350 के अनुसार प्रत्येक जाति को प्रांत में बोली जाने वाली भाषा में अपनी शिकवा शिकायत लिख कर देने का पूरा अधिकार है। अनुच्छे 350 अ में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रावधान है। अनुच्छेद 210 के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष चाहे तो जरूरत पड़ने पर सदस्य को मातृभाषा में बोलने की छूट दे सकता है। अनुच्छेद 350 के अनुसार अध्यक्ष को प्रतिवेदन भी अपनी मातृभाषा में दे सकता है। अनुच्छेद 347 के अनुसार प्रांत के निवासियों की जनभाषा को राजभाषा बनाने की मांग करने पर राष्ट्रपति अपने विश्वास पर उस क्षेत्र विशेष के लिए उस भाषा को राजभाषा घोषित करने का निर्देश दे सकते है इसमें आठवीं सूची कहीं बाधक नहीं बनती। अतः आप यह निर्देश या अध्यादेश जारी करने की कृपा करें।

राजस्थान की जनता अब यह अपमान सहन नहीं करेगी। यह संपूर्ण राजस्थान के अस्तित्व का प्रश्न है। यही के लोग आत्मसम्मान के लिए जीते है और मरते है। हमने मातृभूमि और मातृभाषा की रक्षा की है और करते रहेंगे। क्या राजस्थान के त्याग और बलिदान का यह फल दिया जा रहा है। हमारे जन प्रतिनिधि राजस्थानी भाषा में बोट मांगते है, जीतते है परंतु उस भाषा में शपथ नही ले सकते है। कोर्ट, कचहरी और सरकारी कार्यालयों में अपनी भाषा में बयान या प्रार्थना पत्र देने का उन्हें अधिकार नहीं। क्या इस प्रकार उनके साथ सही न्याय हो सकता है? उन्हें गंवार और असभ्य कहकर अपमानित किया जाता है।

भाषा, साहित्य और संस्कृतिक व्यक्ति को मूल पहचान होती है। वह अपनी अस्मिता खो रही है। हमारी संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का गहरा रंग चढ़ता जा रहै है। नई पीढ़ी के नौजवान नागरिक भ्रमित हो रहे हैं। ऐसे सांस्कृतिक प्रदूषण के समय में और सांस्कृतिक आपातकाल में राजस्थानी भाषा की मान्यता आवश्यक नहीं अनिवार्य हो गई है। आश्चर्य यह है कि विद्यालयों-महाविद्यालयों में राजस्थानी भाषा एक ऐच्छिक विषय के रूप में वर्षों से पढ़ाया जा रहा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से राजस्थानी में समाचार और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे है। केन्द्र और राज्य को साहित्य अकादमियों राजस्थानी साहित्यकारों को प्रतिवर्ष तीस वर्षों से पुरस्कृत एवं सम्मानित करती आ रही है फिर भी इसे भाषा न मानना और मान्यता न देना क्या विचित्र विडम्बना नहीं हैं? अब हम इन पुरस्कारों और सम्मान का बहिष्कार करेंगे क्योंकि मां का मान नहीं तो फिर उसके सपूतों का कैसा सम्मान?

राजस्थान की जनता अब सचेत एवं जागृत हो गई है और पाली जिले से हमने जन आंदोलन प्रारंभ कर दिया है। यह संघर्ष का शंखनाद है-10 जनवरी 03 को हमने जिला कलेक्टर पाली के समाने धरना दिया था और ज्ञापन दिया था। अब हम राजस्थान विधानसभा के आने वाले इसी विधानसभा अधिवेशन में जिले के सभी वर्ग, धर्म, जाति के प्रतिनिधि विधानसभा राजस्थान के सामने धना देने बसें लेकर जा रहे है। मुझे भी 70 साल की वृद्धावस्था में वहां भूख हड़ताल पर बैछने को मजबूर होना पड़ेगा।

आशा ही नहीं हमें विश्वास है कि आप इस गंभीर समस्या पर गंभीरता से विचार करेंगे और संतोषप्रद उत्तर भी देने की कृपा करेंगे।

सविनय सानुरोध

अध्यक्ष, अर्जुनसिंह शेखावत
तारीख: 10-2-2003
पता- 2 घ-36
कमला नेहरु नगर, पाली -306401

पाली, राजस्थान

मातृभाषा राजस्थानी के अस्तिव पर संकट के बादल
(श्रीमती शर्मिला ओझा)

इस साल अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष की शुरूआत करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया को अवगत कराया है कि विश्व भर में बोली जाने वाली कई भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है। विश्व की कई भाषाएं तो लुप्त हो चुकी हैं और कुछ बाषाएं लुप्त हो जाने के बहुत निकट है। ऐसे में भाषा और संस्कृति के संबंधों को लेकर सारी दुनिया में एक नई बहस प्रारंभ हो गई है तथा कई भाषविद् एवं संस्कृति के जानकार इस पर गंभीर चिंता प्रकट कर रहे हैं।

राजस्थान प्रदेश में मातृभाषा राजस्थानी को लेकर वर्षो से एक संघर्ष चल रहा है। आजादी के बाद जब हिन्दीतर भारतीय भाषाओं की सवैधानिक मान्यता का मुद्दा तय हुआ तब राजस्थानी भाषा को दरनिकार कर दिया गया। भाषा और संस्कृति के आंतरिक व मूलभूत रिश्तों के तमाम तर्को को सिर से खारिज करते हुए राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल नहीं किया गया। यह प्रदेश और यहां की युवा पीढ़ी आज तक इसका खामियाजा भुगत रही है।

इस बीच राजस्थान में ही एक ऐसा वर्ग ऊभर कर सामने आ गया जिसने राजस्थानी जैसी प्राचीन, समुद्ध व व्याकरण सम्मत भाषी की सवैधानिक मान्यता का विरोध किया। ऐसे लोग अपने किन स्वार्थो को लेकर राजस्थानी का विरोध करते रहे, इसकी गहराई में ज्यादातर लोग नहीं गए। इससे हुआ यह है कि राजस्थानी भाषा के समर्थक, जो कि अपेक्षाकृत अधिक थे, अपनी मांग को दोहराते रहे और शेष लोग राजस्थान प्रदेश में ही राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के विरोध की राग अलापते रहे। दुर्भाग्य से छह दशकों बाद भी राजस्थानी को उसके हक-हकूक नहीं मिल सके। यह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है।

संसार भर में बोली जाने वाली लगभग छह हजार सात सौ भाषाओं में से लगभग आधी भाषाएं लुप्त हो जाने के कगार पर है। अवश्य ही इनमें कई हिन्दीतर भारतीय भाषाएं भी हैं, किन्तु लगता है हमारी भाषा नीति को अंग्रेजी का ग्रहण लग गया है। हमारे देश में ही ऐसे कई लोग हैं जो क्षेत्रीय भाषाओं को तो क्या, हिन्दी तक को अपनाने से बचते है। चूंकि हिन्दी के बगैर उनका काम नहीं चलता अतः सम्पर्क भाषा के रूप में वे हिन्दी को स्वीकार कर लेते हैं। इस पर भी यह है कि अपनी इस विवशता को ऐसे लोग अपना राष्ट्रभाषा प्रेम मान लेते हैं।

अंग्रेजियत के रंगो में रंगे ऐसे लोग ही राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का विरोध करते हैं और राजस्थानी के विरूद्ध कुतर्क प्रस्तुत करते हैं। राजस्थानी भाषा की बोलियों के उदाहरण देते हुए ऐसे लोग लाग सवाल करते हैं- कौनसी राजस्थानी? तब इन लोगों से कहा जाना चाहिए कि वे अपने भाषा ज्ञान को ठीक से परख लें क्योंकि विश्व की प्रत्येक भाषा, बोलियों से ही बनती है।

राजस्थानी भाषी गुजराती, मराठी आदि सभी भाषाओं का बहुत सम्मान करते हैं। राजस्थानी भाषा के साथ इन भाषाओं के रिश्ते अनादि हैं और इनमे शब्दो का साम्य निर्विवाद है। बावजूद इसके कहा जा सकते है कि राजस्थानी भाषा के विरोधी यह सवाल कभी नहीं उठाते कि गुजरात राज्य के कच्छ और अहमदाबाद में बोली जाने वाली गुजराती में कितना अन्तर है। फिर वे लोग यह सवाल भी कभी नहीं उठाते कि गुजराती भाषा हैं कौनसी? कारण स्पष्ट है कि राजस्थान प्रदेश के राजस्थानी विरोधी लोग केवल विरोध करने के लिए ही विरोध कर रहे हैं। उनके पास न तर्क है न बहस के मुद्दे। वे लोग कल्पित जिन हितों की चिंता करते हुए राजस्थानी विरोध की राग अलापे हुए हैं। जिसका लाभ उन्हें आज तक मिल रहा है।

राजस्थानी भाषी लोग बड़ी शालीनता के साथ अपनी मातृभाषा की संवैधानिक मान्यता की मांग करते रहे हैं। राजस्थानी लोगों की यह मांग कोंकणी भाषा लोगो से पहले की है किन्तु केन्द्र सरकार ने उस क्षेत्र में हुए हिंसक आन्दोलनों के बाद कोंकणी को भारतीय संविधान की मान्यता प्राप्त प्राप्त भाषा मान लिया और राजस्थानी लोग फिर अपनी मातृभाषा को उसके अधिकार नहीं दिला पाए। आज भी राजस्थान प्रदेश सहित देश और दुनिया के कोने-कोने में बसे राजस्थानी भाषी लोग अपनी मातृभाषा की संवैधानिक मान्यता की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

राजस्थानी भाषा की ही तरह भोजपुरी भी संवैधानिक मान्यता के लिए संघर्ष कर रही है। हाल ही में भोजपुरी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता मनोज तिवारी पर डाक टिकट जारी किया गया है। इससे भोजपुरी भाषा के आन्दोलन को अवश्य बल मिलेगा। ऐसा राजस्थानी के संदर्भ में भी होना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष में दुनिया भर के देशों की सरकारों को चेताया है और एक सार्थक पहल की है। भारत के संदर्भ में यदि हम सोचे तो यही कहा जा सकता है कि किसी भाषा को समाप्त कर उस क्षेत्र की संस्कृति के नष्ट हो जाने के मायने क्या होंगे, इस पर आज गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। संस्कृति के नष्ट हो जाने पर नई संस्कृति के साथ जो प्रदूषण फैलता है वह संख्यातीत विकारों के साथ समाज को गहरे तक प्रभावित करता है।

केन्द्र व राज्य सरकारों को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष में उन सभी भाषाओं व विकास पर केन्द्रित हो जाना चाहिए जो आज विलुप्त हो जाने के कगार पर हैं। वे भाषाएं चाहे किसी क्षेत्र की हों और उन्हें बोलने वाले कितने ही ही लोग क्यों न हो। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिन्दीतर भारतीय भाषाओं के विकास से राष्ट्रभाषा हिन्दी को बल की मिलेगा। राजस्थानी भाषी राजस्थानी समर्थक राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सम्पूर्ण सम्मान रखते हुए केवल अपनी मातृभाषा के अधिकार की बात करते हैं, जिसका सभी को सम्मान करना चाहिए। जो लगो ऐसा नहीं करते है, उनकी मंशा और बौद्धिक सामर्थ्य पर सवाल उठाने का समय आ गया है।

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राजस्थानी गुजराती भाषा बहनां
संदर्भर्- राजस्थान पत्रिका
प्रस्तुति- साहित्यकार देवकिशनजी चंपाखेडी

राजस्थानी भाषा ने मान्यता अब जल्दी संभव
इटली रा शोधकर्ता राजस्थानी ने श्रेष्ठ भाषा बताई

सूरत, 19 नवम्बर। भारत में बोली जावा वाळी कई भाषावां में सबसु ज्यादा धनी अर साहित्यिक क्षमता सु भरपूर राजस्थानी भाषा राजभाषा मान्यता सु अबार भी दूर है। इण दर्जे ने हासिल करणे रे वास्ते सालां सु लडाई चालू है। सूरत आया राजस्थानी भाषा रा जाणिया मानिया साहित्यकार देवकिशन जी चम्पाखेडी रविवार ने 'पत्रिका' ने भेंट में बतायो कि जल्द ही राजस्थानी भाषा ने भी गौरव मिल जावेगा।

देवकिशन जी बतायो कि, साला पेली भैरोसिंह जी शेखावत रे शासन काल में विधानसभा में प्रस्ताव लायो गयो। सब री सम्मति सु प्रस्ताव मंजूर करियो जावे, इणसु पेली तीन विधायका अडचन पैदा करी। विण टेम सु ही राजस्थानी भाषा में राजनीति प्रवेश करियो अर आ राजभाषा घोषित होवण सू वंंचित रेवती आई है। राजपुरोहित परिचै ग्रंथ विमोचन समारोह में भाग लेवण आया राजस्थान रे मूल नागौर रे मेडतासिटी रा देवकिशन चम्पाखेडी राजस्थानी भाषा में 'सूरज, कपूत, जंजाल, कळंक, धाडवी, लिछमी,खेजडी' इत्याद नौ उपन्यासां री रचना करी है।

इणरे अलावा राजस्थानी भाषा ऊपर शोध योग्य 16-17 शोध किताबां, 4 कहाणी सांग्रह, 2 संस्मरण किताबा अर 1 काव्य संग्रह री भी रचना करी है। एतिहासिक महाराणा प्रताप सीरियल में मुकेश खन्ना रे साथे बूंदी राव री भूमिका निभा चुकिया चम्पाखेडीजी राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी सु राजस्थान रत्नाकार, केंद्र सरकार रे धनश्याम अवार्ड आद सु भी सम्मानित करिया जा चुकिया है।

देवकिशन जी बताया कि इटली रा शोधकर्ता एप्ली टेमीटोरी आपरै 50 साला रै अनुभव ने राजस्थानी भाषा रे साथै बीकानेर में रेर'परा बांटियौ अर इने सर्वश्रेष्ठ भाषा रौ दर्जो आपरे लेखां में दियो है। टेमीटोरी रै मार्गदर्शन में ही राजस्थानी भाषा ने मानता दिलाणे रा प्रयास भाषा साहित्यकारां री और सु आज भी जारी है। राजनीतिक भेदभाव सु ग्रस्त रही राजस्थानी भाषा ने साल 2003 में अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थानी भाषा रो संकल्प सर्व सम्मति सु विधान सभा में पारित करियो पण तत्कालीन केंद्र सरकार रा उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण जी आडवाणी इने खारिज कर दिया। 12 करोड सु भी ज्यादा राजस्थानी बोलणे वाळा देश-विदेश में रेवे है पण दुर्भाग्यपूर्ण तरीके सु राजस्थानी राजभाषा रो दर्जो पाणे सु वंचित है। चंपाखेडा जी बताया कि ग्यारहवी सदी में गुजराती अर राजस्थानी भाषा एक ही मां री दो बेटियां ही। बी टेम में मरु-गुजरी नां सु प्रख्यात भाषा रूपी दोनु बेहनां में सु आज़ एक पूरी वैभवी अर प्रतिभाशाली है, जदकि दूजी अधूरी पडी है ।

चम्पाखेडी जी बतायो कि संभवतया अगले दो-तीन साला में आजादी सु अधूरो पडियो ओ गौरव रो कार्य पूरो हो जाए। इण वास्ते राजस्थानी भाषा मानता संघर्ष समिति दोनु ही करोडो राजस्थानी भाषा रे पसंदीदा से साथे संघर्षरत है।


राजस्थानी भाषा ने कियां मिलसी मानता?
संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र मासिक, हनुमानगढ जं.(राजस्थान)
अंक: 4, जुलाई-सितम्बर, 2005

मायड भाषा राजस्थानी रा जद तेरह किरोड लोग है तो इण्नै मानता क्यूं नीं मिल री है? मूळ कारण कांईं है? वीरां री भूमि इण राजस्थान में अबै कांई होग्यौ? स्यात आम आदमी रूचि नीं लेवै या पछै कोई राजनेता आगै नीं आवै?

अबै नेतावां नै भी सोचणौै पडसी कै राजस्थानी भाषा नै मानता देवणी चाइजै। कोई मजबूरी नीं है। पण टैम री आंग है। मांग री मुजब जिकौ पख आगै आसी। बौ स्यात और ज्यादा मजबूत होसी। आवणआळै टैम में बेरोजगारी इत्ती घणी हो ज्यासी कै हाथ, हाथ नै खायसी। मंहगाई घणी हो ज्यासी। पछै समाज में घणी अबखायां आसी। तद इणां रै निपटारै सारू हल ओ ई होसी कै मायड भाषा राजस्थानी नै दूसरी राजभाषा रो दर्जो देवो। इण सूं दूसरैै राज्य रा बेरोजगारां नै रुजगार मिलैलो। सोचण री बात आ है क्रांति भूख सूं सरू होवै। इतिहास गवाह है।

राजस्थानी अकादमी, केंद्रीय साहित्य अकादमी, अनेकूं युनिवर्सिटयां, देश रा नामी साहित्यकारां अर बुद्धिजीवियां जद मायड भाषा राजस्थानी नै मानता दे राखी है तो भळै मानता में दिक्कत कांई है?

 


राजस्थानी भाषा री मान्यता वास्ते
प्रस्तुति - डा.राजेन्द्र बारहठ

आदरजोग
श्रीमान अशोक गहलोत साहिब,
मुख्यमंत्री
राजस्थान सरकार, जयपुर

विषय : राजस्थानी भाषा री मान्यता वास्ते।

राजस्थानी भाषा जकि आजादी सु पेला राजस्थान, मालवा, उमरकोट (पाकिस्तान) की राजभाषा ही, जिणरी मेवाडी, ढूंढ़ाडी, मेवाती, हाडौती, बागडी, माळवी, ब्रज, मारवाडी, भीली, पहाडी, खानाबदोषी इत्यादि बोलियां अर डिंगल-पिंगल शास्त्रीय कविता री शैलियां हैं। इणरा लाखों हस्तलिखित ग्रंथ शोध संस्थानां में प्रकाशन री प्रतीक्षा कर रिया है। सिंधी, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, मराठी रा आदिकाल मध्यकाल राजस्थानी लिपि मुडिया में ही है। आपारी राष्ट्रीय लिपि देवनागरी वर्तमान गुजराती, पंजाबी री लिपियां इणी सु विकसित हुई है। राजस्थानी रे गीत छंद रा 120 भेद है, जिका विश्व री कोई भी भाषा रे छंद शास्त्र में नीं है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, महाविधालयां, विश्वविधालयां यू.जी.सी. में शिक्षण अर शोध री भाषा है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकायां, टी.वी.चैनल में प्रसारण राजस्थानी में हुय रियो है। नाटक अर फिल्मां में अभिनय अर रंगकर्म रो श्रेष्ठ माध्यम साबित हो रई है। अमेरिका री लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस राजस्थानी ने विश्व री समृद्धतम 13 भाषायां में सु एक मानते हुवे पदमश्री कन्हैयालाल सेठिया री 75 मिनट री रिकार्डिंग कर संग्रह में राखी है। शिकागो विश्वविधालय में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में राजस्थानी एक विषय रूप में है। पाकिस्तान में 'राजस्थानी कायदो' नांव सु व्याकरण चाले है। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर एवं भारत सरकार री साहित्य अकादमी अर दूजा देश दुनिया रे साहित्यिक मंचा सु राजस्थानी सृजनधर्मियां राजस्थानी ने प्रतिष्ठापित करिया है।

 

राजस्थानी भाषा ने संविधान री 8वीं अनुसूची में जोडणे रे वास्ते राजस्थान विधान सभा 25 अगस्त 2003 ने सर्वसम्मति सु संकल्प प्रस्ताव पास कर'र केन्द्र सरकार रे कने भेज दियो, बो बठे लंबत है। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति प्रदेश अर देश दुनिया में राजस्थानी मान्यता रो आन्दोलन अग्रिम संगठन राजस्थानी मोटयार परिषद, राजस्थानी चिंटन परिषद, राजस्थानी महिला परिषद, राजस्थानी खेल परिषद अर सैकडो साहित्य, समाज, संस्कृति री संस्थायां रे माध्यम सु चला रई है। हजारों बैठका, गौष्ठियां, सम्मेलन, धरना, प्रदर्शन, रैलियां, मुखपत्ति सत्याग्रह जिसा आन्दोलन हुया है। केन्द्र अर राज्य सरकार राजस्थानी ने अब तक मान्यता नीं देर जन भावनायां अर प्रदेश रो अपमान करियो है।

राज्य सरकार सु मांगियां  -

केन्द्र ने राजस्थानी मान्यता रे वास्ते पत्र लिखयो जावे।
प्रदेश में पेली क्लास सु अनिवार्य विषय रे रूप में राजस्थानी विषय शुरू करियो जावे।
विधालयां, महाविधालयां, विश्वविधालयां में राजस्थानी शिक्षकां रे खाली पदां ने भरियो जावे अर जठे विभाग नीं है बठे खोलियों जावे।
राजस्थान लोकसेवा आयोग में अनिवार्य अर ऐच्छिक विषय रे रूप में राजस्थानी शूरू करी जावे।
सरकारी खरीद में राजस्थानी री पुस्तकां रो प्रतिशत तय करियो जावे।
सरकारी आयोजना में राजवुड अर दूजा राजस्थानी कलाकारां अर कवियां ने ही बुलायो जावे।
राजस्थान रोडवेज रे दरवाजां पर "पधारो सा" अर बसां पर "पधारो म्हारै देश" लिख्यो जावे।
राजस्थानी अकादमी ने सिरमोर अकादमी घोषित करी जावे अर इणरो बजट 5 करोड करियो जावे, साथ ही अकादमी अध्यक्ष ने केबिनेट मंत्री रो दर्जो दियो जावे।
राजस्थानी फिल्मा ने मनोरंजन कर सु मुक्त करियो जावे।
राजस्थानी फिल्मा वास्ते अनुदान दियो जावे।
राजस्थानी फिल्म शुटिंग लोकेशन फ्री करी जावे।
प्रदेश रे सिनेमाघरां में राजस्थानी फिल्म सप्ताह में एक दिन अनिवार्य रूप सु दिखाणे रो नियम बणायो जावे।
राजस्थानी फिल्म ड्वलपमेंट कार्पोरेशन रो गठन करियो जावे।
सरकारी विभागा रा विज्ञापन राजस्थानी में प्रसारित करिया जावे।
राजस्थानी में स्लेट परीक्षा शुरू करी जावे।
संघर्ष समिति सरकार सु राजस्थानी भाषा संस्कृति रे सवाल पर अपील करे है कि बे आपरी मायड भाषा रे प्रति फर्ज निभावे। जनवाणी रो सम्मान कर'र ही जनप्रिय अर सच्चा जन तंत्री हो सके है। आपाणी भाषा बोलो, ओपरी भाषा क्यूं बोलो? जनवाणी री उपेक्षा सु जनभावना री उपेक्षा होवे है। जनतंत्र री जडा कमजोर होवे है।

जै राजस्थान, जै राजस्थानी।

आपरौ
डा.राजेन्द्र बारहठ
प्रदेश महामंत्री
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति

 


राजस्थानी भाषा री संवैधानिक मान्यता हेतु
संदर्भ- सुरतगढ टाईंम्स,
तारीख 1 जनगवरी 2009, पेज-2

राजस्थानी विश्व री समृद्धतम भाषायां में सु एक है। इणरो 2500 साल पुराणो इतिहास है। इणमें लिख्या थकां लाखो हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहालयां में पडया है। आजादी सु पेला पूरे राजपूताने री रियासतां री राजभाषा राजस्थानी ही। भाषा विज्ञान रे आधार पर राजस्थानी एक स्वतंत्र भाषा है। राजस्थानी लिपि मुडिया सु ही राष्ट्रीय लिपि देवनागरी बणी, गुजराती री वर्तमान लिपि, पंजाबी री ग़ूड़ूमुखी लिपि, राजस्थानी लिपि मुडिया सु ही बणी है। राजस्थाणी लिपि मुडिया रा दुजा नाम मोडी, वाणीयावटी, अर महाजनी है। मराठी, हिन्दी, ब्रज, नेपाली रो आदिकाल, मध्यकाल रो साहित्य राजस्थानी लिपि मुडिया में लिख्यो गयो है। सिंधी रो आदिकाल रो साहित्य भी राजस्थानी लिपि मुडिया में लिख्यो गयो है। राजस्थानी री स्वतन्त्र व्याकरण है। पाकिस्तान में जकि राजस्थानी व्याकरण चाले है विणरो नाम राजस्थानी कायदौ है शिकाग़ो विश्वविधालय अमेरिका में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में राजस्थानी व्याकरण चालै है। इणरा कई तरहा रा शब्दकोष है पदम श्री सीताऱाम लालस रो सबसु मोटो राजस्थानी शब्दकोष है जिके में 2 लाख पचास हजार शब्द है। राजस्थानी री मेवाडी, बागडी, मालवी, ढ़ूंढ़ाणी, मारवाडी, हाडौतीं, मेवाती, भीली, ब्रज, खानाबदोशी बोलियां इणरा अंग है और डिंगल-पिंगल इणरी प्राचीन शास्त्रीय कविता री शैलिया है इण तरह राजस्थानी भाषा रेडियो, दूरदर्शन रे समाचारा अर दूजा कार्यक्रमा में दशका सु मान्य भाषा है। केन्द्र सरकार री साहित्य अकादमी में भारतीय भाषायां रे समकक्ष राजस्थानी ने मान्यता दे राखी है। राजस्थान में राजस्थानी भाषा साहित्य अर संस्कृति अकादमी भी काम कर रई है। साथ ही दुनिया भर में शोधार्थी राजस्थानी रे विषय में शोध कर रिया है। विश्वविधालयां मंे राजस्थानी भाषा साहित्य रा स्वतंत्र विभाग है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में ऐच्छिक विषय रे रुप में राजस्थानी विषय पढायो जा रियो है। राजस्थानी नाटक पूरे देश स्तर रे मंचा पर मंचित हो रिया है। राजस्थानी फिल्मा निरन्तर बण रई है। राजस्थानी लोकगीतां, भजनां, कत्थायां, लोकनाटकां री ओडियो कैसेट बहोत लोकप्रिय हो रई है। दुनियाभर रे सांस्कृतिक समारोहां में राजस्थानी कलाकार आपरी अमिट छाप छोड रिया है। होटल व्यवसाय में राजस्थानी भाषा अर संस्कृति रा प्रसार पश्चिमी होटल संस्कृति ने हटातो जा रियो है। राजस्थानी पर्यटन विभाग अर संास्कृतिक केन्द्र रे सांस्कृतिक उत्सवां में राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति रे माध्यम सु राजस्थानी री आत्मा प्रकट हो जावे है पण दुःख री बात आ है कि इते गौरवशाली इतिहास वाली राजस्थानी रो नाम संविधान री आठवीं सूची में नीं होणो 12 करोड राजस्थानिया रो अपमान है। आपारा जनप्रतिनिधि आपारी भाषा में शपथ नीं ले सके ओ जनतंत्र रो हनन है। संविधान रे त्रिभाषा तंत्र रो हनन है। राजस्थानियां ने आपरी भाषा आपरै ही प्रांत में अनिवार्य रूप सु नीं पढ़णे दे'र खुद री जडां ने काटियो जा रियो है। जिको मानवाधिकारां रो हनन है। इण वास्ते आपा आ मांग करा हा कि राजस्थानी भाषा ने संविधान री आठवी अनुसूची में जोडयो जावै। इण संबंध मे 25 अगस्त 2003 ने राजस्थान री विधानसभा में सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार ने भेज दियो अर वर्तमान केन्द्र सरकार रे सामे बात करणे रे वास्ते अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति मायड भाषा सन्मान जात्रा रो आयोजन करियो जकि 21 फरवरी 2005 ने श्रीगंगानगर सु शुरू हुई जकि पूरे राजस्थान रे अधिकतर हिस्सां ने सम्मिलित करती हुई 3 मार्च 2005 री शाम श्री शिवराज पाटिल गृहमंत्री भारत सरकार रे घर पर जार करोडां राजस्थानियां री भावना सु केन्द्र सरकार ने अवगत करवायो इण संबंध में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति री शाखायां अर इणरा अग्रिम संगठन राजस्थानी मोटयार परिषद राजस्थानी महिला परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद आदि इण आन्दोलन में जोर-शोर सु पूरे प्रांत में लाग्योडा है। राजस्थान री विधानसभा रे बी प्रस्ताव में राजस्थान री आत्मा बसे है आप इणने आधार बणा'र राजस्थानी भाषा ने संविधान री आठवीं अनुसूची में जोडणे रो ऐतिहासिक काम कर राष्ट्रीय धरोहर ने बचावो अर इणने संरक्षण देणे में जिम्मेदार मंत्री अर जनतंत्रीय सरकार रो फर्ज निभावो। आपारी नुवीं पीढी आपाऱी मौलिक संस्कृति सु कटती जा रई है। क्यंुकि आपारी भाषा आजादी रे बाद सु अनिवार्य रूप सु पढाई नी जा रई है। आपारे टाबरा ने आपरी ही जडां सु सरकारियां काटती जा रई है जिको कोई भी जनतंत्र पर काळो धब्बो है। आपा राजस्थान वासिया सु भाषा रै आधार पर धूर्तता हो रई है खुद री भाषा बोलणे पर गवार महसुस करवायो जा रियो है। किसान, मजदुर अर प्रशासक, मरीज अर डाक्टर, न्यायालय अर पीडित रे बीच संवाद हिनता री स्थिति है जकि कोई जनतंत्रीय संवैधानिक व्यवस्था रे जनतंत्रीय होणे पर प्रश्न चिन्ह खडो करे है। इण वास्ते आपसु अरज है कि राजस्थानी भाषा ने संविधान री आठवीं अनुसूची में जोड'र जनशक्ति ने आन्दोलन री बजाय राष्ट्रीय विकास में लगावे। इणी आशा अर विश्वास रे साथ धन्यवाद।


भासा री मान्यता प्रदेश रै लोगां रो हक है, अर ओ हक आपा ले'र रहस्या(संकलन- सूरतगढ टाइम्स)
(तारीख- 1 जनवरी 2009, अंक-17, पेज-4)

श्री सुगन स्मृति संस्थान कानी स्यूं आयोजित राजस्थानी भासा रा साहित्यकारां करी भासा री मान्यता री बात

राजस्थानी भासा री संवैधानिक मान्यता सारू संघर्षरत परलीका रा युवा साहित्यकार विनोद स्वामी नै मिल्यौ श्री सुगन साहित्य सम्मान

भास्कर न्यूज, सूरतगढ
श्री सुगन स्मृति संस्थान कानी स्यूं शनिवार में सभागार मांय श्री सुगन साहित्य समारोह हुयो। समारोह मांय राजस्थानी भाषा री संवैधानिक मान्यता सारु संघर्षरत परलीका रा युवा साहित्यकार विनोद स्वामी ने सम्मानित करिज्यो।

कार्यक्रम रो शुभारम्भ मां सरस्वती रै चित्र रै माथै पुष्प चढार हुयौ। जिला प्रमुख पृथ्वी राज मील कहयो के राजस्थानी भाषा री मान्यता प्रदेश रे लोगा रो हक है और ओ हक आपा लेर रहस्या। वां कयो के मायड भाषा रे आन्दोलन में चहरेक मिनख री भूमिका होणी चाईजै।

राजकीय महाविधालय रा श्री गंगानगर रा हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अन्नाराम शर्मा मायड भाषा रो संबंध मिनख रे अंतर्मन स्यूं बतायो। वां भासा री एकरूपता पर बोलता थका बतायो कि एकरूपता रो सवाल निराधार है। अर बोलिया हरेक भासा री खासियत होवे है। दुनिया री सगळी भाषा में विविधता है। विविधता स्यू भासा रो फुटरापो बढे।

परलीका रा साहित्यकार रामस्वरूप किसान अर सत्यनारायण स्वामी विनोद स्वामी रै रचनाकर्म पर बोलतां थका कयो के भासा री मान्यता सारु आन्दोलन ने जनआन्दोलन बणावन में विनोद री भूमिका घणी महताऊ रही है। विनोद स्वामी अखरै प्रांत में गांव-गांव अर ढाणी-ढ़ाणी जाकर मायड भासा मान्यता री अलख जगाई है। विनोद री रचनायां आम आदमी री पीड अर निर्मल मन रा उदगार है। ओ पुरस्कार विनोद स्वामी रो नहीं बल्कि भासा रो सम्मान है।

पत्रकाऱ कीर्ती राणा आपरौ उदबोधन ठेठ राजस्थानी में देवता कह्यो के राजस्थानी री संस्कृति तोडन री कोनी जोडण री है। अठे दूजी भासा रे लोगां रो स्वागत करियो जावैै। औ पधारो म्हारै देश केवण वाळे लोगां रो प्रांत है। विनोद स्वामी री रचनावां में उपेक्षित वर्ग री बात कई गई है। पावना ने संस्थान कानी स्यूं सैनानी भेंट करीजी। समारोह मांय महाविधालय प्रबंध समिति रा अध्यक्ष राजकुमार गर्ग, सुगन स्मृति संस्थान रा अध्यक्ष हरिमोहन सारस्वत, साहित्यकार मनोज स्वामी, मदन पुरोहित आपरा विचार राख्या।

आकाशवाणी रा वरिष्ठ उदघोषक राजेश चड्‌ढा, साहित्यकार कृष्ण कुमार आशु, राधेश्याम स्वामी, प्रहलादराय पारीक, कृष्ण स्वामी, शिवराज भारतीय, बाबूलाल सारस्वत, सतीश छीपा, राजेन्द्र छीपा, करणीदान सिंह राजपूत, शिव सारडा, डा. हरप्रीत सिंह, राजेश सिडाना, विष्णु शर्मा, श्रीभगवान, प्रवीण भाटिया, आशा सारस्वत, कैलाश सोनी समेत मोकळा सुणनिया-गुणनिया हाजिर हा।

5100 रिपिया सेनानी अर दुशालो भेंट करयो
कार्यक्रम में परलीका रा साहित्यकार विनोद स्वामी नै सुगन साहित्य सम्मान स्वरूप अतिथियां 5100 रिपिया सेनाणी अर दुशालो भेंट करयो। राजस्थानी भासा अर संस्कृति रे विकास रै सारू ओ पुरस्कार श्री सुगन स्मृति संस्थान रा अध्यक्ष हरिमोहन सारस्वत आपरै पिता स्वर्गीय श्री सुगन चंद्र सारस्वत री स्मृति में सन 2003 स्यूं शुरू करयो।

वेब पुस्तक इक्कीस रो हुयो लोकार्पण
सत्यनारायण सोनी री कहाणियां री वेब बुक इक्कीस रो लोकार्पण अखिल भारतीय सत्यनारायण सोनी री काहाणियां री वेब बुक 'इक्कीस' रो लोकार्पण अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मान्यता संघर्ष समिती रा प्रदेश पाटवी हरिमोहन सारस्वत करयो। आ राजस्थानी री पैली वेब बुक है अर इणै परलीका रा पढेसरी अजय कुमार सोनी तैयार करी है।

कविता पाठ नै मिली मोकळी दाद
समारोह मांय सम्मानित कवि विनोद स्वामी अर वरिष्ठ रचनाकार रामस्वरूप किसान कविता पाठ करयो। विनोद स्वामी री कविता 'बाई' व 'आई सासरे री पाड झिणो घूंघटो ले काड' व रामस्वरूप किसान री कविता 'बेटी रो खत' नै मोकळी दाद मिली।



राजस्थानी भासा नै मान्यता अेक दीठ
संदर्भ- सूरतगढ टाइम्स, तारीख- 1 दिसमबर 2006, पेज-2

किण मायड रो पूत है, भासा करे पिछाण।
बोले भासा ओपरी गोद लियोडो जाण।
होवै नीं जिण देसडै, मां भासा रो मान।
के पावै बो देसडो परदेसां सनमान।

राजस्थानी भासा नै अजै संविधान री मान्यता री दरकार है। आजादी रै साठ बरसा पछै ई राजस्थान रा लोग आपरी मायड भासा नै आजाद नीं करवां सक्या। जद क होळै-होळै 22 भासावां संविधान री आठवीं अनुसूची मांय भेळी हु चुकी है।

राजस्थानी भासा री समरधता री बात करां तो किणी सूं छानी भी कोनी अर एक बैठक मांय पूरी भी कोनी हुवै। राजस्थानी भासा रो हजार बरस पुराणो साहित्य मिलै। 2 लाख सूं बेसी तो हस्तलिखित पांडुलिपिया ठाई पडी है जिणां पर अजै ताई घणो काम हुवणो बाकी पडयो है। स सूं बडो शब्द कोष सीताराम जी लालस रो अर ईयां ई 14 ओर शब्दकोश री जाणकारी मिलै। खुद री व्याकरण है। एक-एक सब्द रा सैकडू परयायवाची है। आखै देस मंई नंई विदेशां तांई भणीजै अर भणाई जै। मुहावरांकोश, लोक कथावां, कहावतां रो अखूंट भंडार भरयो पडयो है। केन्द्रीय अकादमी 1972 सूं 11वीं 12वीं मांय अर महाविधालय स्तर पर बी.ए. एम.ए. मांय भणाईजै तो फेर कठै कसर रैहगी क आपणी मायड भासा राजस्थानी नै अजै मान्यता कोनी मिली।

राजस्थानी भासा साहित्य एवं अकादमी रा मौजूदा अध्यक्ष देव कोठारी जी री सकारात्मक रो जिकर न करां तो बात आधी रेह जी सी। कोठारी जी री सोच भासा री पीड दूर दिसावर में बसैडै राजस्थानियां तांई पूगावण री घणी खेचळ करी है। जिका लारलै बरस कलकते मांय अधिवेशन राख्यो।

इण सम्मेलन मांय आपां नै बंगाल रा सांसदां रो आश्वासन मिल्यो क आप-आप रै एम.पी. यां सूं संसद मांय प्रस्ताव रखवाओ अनुमोदन म्है करस्यां। अर मान्यता दिरास्यां राजस्थानी नै के मान्यता रै मान, सम्मान अर अपमान नै बंगालियां सूं बेसी कोई नीं जाण सकै। आ बडी जीत ही बडी बात ही। जिण सारु कोठारी जी नै घणा घणा रंग।

इतै स्यूं ई कोनी सरयो। इणी बरस मांय अकादमी रो एक ओर आयोजन दिखण रै दरवाजै हैदराबाद मांय करयो। बठै रै लोगां रो विश्वास जित्यो अर मायड भासा री बात सारे देस मांय एक सागै उठण लागगी। इण सम्मेलन मांय राजस्थानी भासा री गूंज हैदराबाद मां हुई। इणी सम्मेलन मांय आयोडा आपणा शिक्षा मंत्री घनश्याम जी तिवाडी तो साफ कैयो क जद संविधान मांय 22-22 भासा री मान्यता है तो राजस्थान नै संविधान मं भेळी करण री बात करतां ई लोगां रै मरोडा क्यूं उठै। म्हे के मोरडी रै भाठो मार दियो जिको म्हारी भासा नै 8वीं अनुसूची मं ठोड नीं मिलै।

अब तो हालत आ है के जठे ई कोई आयोजन हुवै बो भासा री मान्यता री पीठ उठाए बिन्या सम्पूर्ण कोनी हुवै इयां मान ल्यो का आ तो एक परंपरा बणगी है। आ भी बडी बात है। इण री चरचा आगै बधावा तो घणकरी क भासावां आज लुप्त होगी। चलण मं कोनी रैहगी। पण राजस्थानी आपरो बजूद बिन्या मान्यता मिल्यां ई हाम-काम राख राख्यो है आ ठाडी बात कोनी के?

सांस्कृतिक पख री बात करा तो इण धरोड सूं आपां घणा मोदीजां। मोरियाळी जियां। जिको आपरो फूटरो फूटराफो देख देख छतो ताणै नै घूमर घालै। पणा जणापगां कानी जोवे तो आसूं टळकावै। आपां आपणी भासा, आपणी संस्कृति एक तमाशो बण रै रैहग्या। आपणी संस्कृति एक नुमाइश बण र रैहगी। बडे-बडे समारोहां मांय, अंगरेजी इस्कूलां मांय राजस्थानी लोक गीत लोकनाच हुवै। लोग ताळी जावै अर आपां राजी हुवां क आपणै गीता मांय इतरी अपील है क लोग रीझै। पण लोग तो ओर ई घणी भूंडी-भूंडी चीजां नै ई चाव सूं देखै ताळी बजावै तो बां मंई अपील हुली?

ईया तो मान्यता कोनी मिले। जद तांई सावचेत नीं हूंवा अर राजस्थानी भासा नै सुवाल नै जीवण मरण रो सुवाल नीं बणास्यां।

आपणा निजूं कामां सारू किता सावचेत हा आपां। लूंठा नेतावां सूं आपाणो काम कढावां हा। कितनी लेलडया काढा। पगां मं पड लिट जावा। कदी बोटा रो जोर दिखावा। कदी पीसा रो जोर दिखावां। पणा आपा निजू हित किया न कियां साधा। देखा क किता जणा ईमानदारी सूं इस्यो दबाव मायड भासा राजस्थानी सारु बनायो है क ना जी थानै ओ काम तो पार घालणो ई पडसी नीं तो फेर ठीक कोनी रेहवै। जिका करयो है बे बडम रा हकदार है। ओजूं करां। आप आप रै रुबतै नै बरता परखा। नेतावां सूं न्यारा-न्यारा मिला जद तांई भासा नै मान्यता मिलै जी में एक चेंट राखां बींया तो भाई बेली रिश्तेदारी में लंूठी लंूठी बातां करा क आपणी जाखड सागै रिश्तेदारी है। मुख्यमंत्री तांई सीधो आणो-जाणो है। गैलोत सागै धरमेलो है। कोई काम हुवै तो बताइयो। अरे ईसूं मोटो काम के हुसी थारी मां रै मूंढै रै ताळो लागरयो है रो ताळो खुला जे कीं करण जोगो है। पण नां जी आपा चिकणा घडा हा क छांट ई को ठेरै नीं। दो दिन इस्ये जलसे मांय मुसाणीयो बेराग जागै। राजस्थानी राजस्थानी करां घरां जावंता जावता ईगलिस्तानी बण ज्यावा। इंगलिस रा मन करोडा री एक बात आप सामी जरुर करणो चावूंगा क सूरतगढ रै एक अंग्रेजी इस्कूल मांय आपरै सालीणै कळेण्डर मांय उपरी उपर आछो फूटरो गोरबन्द सूं सजयोडो अर ऊंट र सणै असवार फोटू छाप राख्यो है। पण मांय राजस्थान दिवस 20 अगस्त ने छाप राख्यो है। अर मनायो बी बा 20 अगस्त नै । इर इस्कूल है। 12 वीं तांई रो अरे कितोक अपमान करवांता रेहवांगा आपां।

म्हारै सेर सूरतगढ रै आकासवाणी केन्द्र रो जिकर भी म करणो चावूंगा थोडो-सोक कण केन्द्र री थरपणा ई सीवाडै सूं आंवती पाकिस्तानी रेडियो री आवाज नीं रोकण और राजस्थानी लोक संगीत, लोक संस्कृति में बधेपो करणा सारू हूई। इस्यो म्हारो मानणो है। अर इण मांय को केन्द्र घणो सफल भी हुयग्यो। पण लारलै बरस सूं इण रो नाम काटण सिटी चेनल कर दियो जिको घणो अणखावणो लागै। जद क राजस्थान रा दूसरा केन्द्रा रो नाम बठै री संस्कृति रै अनुरुप राखिज्यो है। अर अबे अठै सूं राजस्थानी रा कार्यक्रम थुडता जा रिया है। अर दूसरा मांय घणो बधेपो होग्यो।

ईया ई लारलै दो बरसा पेला माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कानी सूं जियां और प्रतियोगी परिक्षायां हुवे है बिया हि राजस्थानी भासा मांय ई बा प्रतियोगितावां हुई। पण अगले बरस ई राजस्थानी रा विरोधियां रै मरोड उठण लागी। बोर्ड अध्यक्ष विमल प्रसाद गुप्ता ई प्रतियोगिता नै हटा दी नीं। हालांकि ई प्रतियोगिता सूं छात्रा ने घणो सीटो कोनी मिल्यो अर नं ई सीटयो खुस्यो सिवाय दो-तीन हजार री छात्रवृति रै अलावा। पण हो एक अपमानजनक कार्य। जद भासा प्रेमी बोर्ड अध्यक्ष सूं मिल्या तो साफ कयो क किसी राजस्थानी में तो इणने पाठयक्रम सूं ई हटास्यां। है भी ठीक बात। हटा देवणी चाइजै जिकी प्रांत रा लोग इता निबळा हुग्या क बै आपरी मा री गाळ न ई तमगो समझे तो बां लोगा री भासा राजस्थानी कतई नी हुवणी चाहिजै। राजस्थानी आपरी मायड भासा री कुरबानी देयर हिन्दी ने पैदा करी, पाळी, पोखी। हिन्दी रो आदिकाल राजस्थानी सूं सुरू हुवै। ई बिन्या हिन्दी कठै। इण सूं बेसी लोग राजस्थान सूं के बलिदान चावै। जीभ काटल्यो म्हारी।

बे आपडा घणा सावचेत हा। मोके नै समझै हा बेळै कुबळै री बांण ने जाणे हा जणां समझै हा जणां ई तो बंगाली, गुजराती, तमिल, तेलगु, पंजाबी आळा आपरी अडी राखी अर नतीजो क आज बां रै भासा है अर म्है जिका कुरबानी दी बै गूंगा है हिन्दी कमजोर हुजी सी। अरे थे ईडा ई नाढू खां हो जणा दूजै प्रान्तां मं जठै हिन्दी रो नाम लेवो कोनी कठै तो लागू कराल्यो। म्हे मान्यता री मांग करा जणा नमक हरामियां रै बाईटा आवण लागज्यै क ना जी ए तो भासावाद फैलावे। बां ना जोगा ने कोई केवण आळी कोनी क थारी केदया जिकोडी 22-22 भासावां ने मान्यता थकां ई म्हारै पर दोस लगावो। धिकार है थानै फोट है। धरती रा बोझ हो थे।

एक ओर बात अब काळे बरस एक संस्था 8वीं अर 12 वीं कक्षा रे बालकां नै सम्मानित करण बांरी अंक तालिकावां मांगी जी। संजोग सू मेरो पतो दिरिज्यो अंक तालिका जमा करण रो। अर जिकी 40-42 अंक तालिकावां आई बां मांय सू घणकरा क बाळका कनै तृतीय भासा रै रुप मांय पंजाबी लियोडी ही अर एक ई बाळक रा 80 सूं नीचे नंबर कोनी हा। थे मान सको हो क सूरतगढ तैसील मांय इता तकडा पंजाबी भासी है। नीं ह पण पंजाबी भासा रे प्रति नेह है बा मास्टरां रो जका बे कोपी जांची है ज्यादा कीं भी केवणो नीं चावूं पेली बात तो राजस्थानी भासा रै रुप मांय छठी सूं 10वीं तांई है इ कोनी रेगुलर इस्कूल मांय 11वीं 12वीं सारु कोनी। अब के सकां हां क तीन इस्कूल परलीका, संगरिया अर जानकीदास वाळा मांय है आं टाळ छात्र बिच्यारोे जे राजस्थानी रो मान बढावै तो उण नै प्राईवेट फार्म भरणो पडे। जी लगा पढै। पण कापी जांचती वेळा राजस्थानी रा मास्टर बणज्यावै करडा सूं करडा परीक्षक। छोरा रो होसळो ई जवाब दे ज्यै।

ऱाजस्थानी भासा मांय बाळका री भणाई पेलै दरजै सूं ई होवणी चाइजै अर उण नै छठी सूं वेकल्पिक विषय रे रूप मांय राजस्थानी लेवण री छूट होवणी चाईजै। कितनी बिडम्बक हालत है। आपणै परदेस मांय आपां आपणी भासा कोनी पढ सका जद क दूसरी भासा जिकी आपां पढ जणा कोनी पढ सका। वाह रे सिस्टम वाह।

राजस्थानी भासा साहित्य संस्कृति अकादमी बीकानेर रे संयोग सूं लिखारा श्री हूंस बधावण सारु पोथ्या छपै है। पण पोथ्या री बिक्री रो हुवै कोनी। क्यूंक पढण रो तो किणी नै बगत ई कोनी। अकादमी रो संयोग़ दिरीजे बींसू लेखक नै 100-150 पोथ्या ई मुसकल सूं मिल सकै। अर बो ठीक समीक्षा सारु ई कोनी भेज सकै।

अकादमी रो सैयोग तो घणो ई है अर घणो ई कोणी दोनूं ई बात है। पत्र पत्रिकावां ने आर्थिक सैयोग देवै, जागती जोत छपै अर पुरस्कार देवे, आंचलिक समारोह आयोजित करे। छोटा-मोटा कार्यक्रमा मांय भी भेळप करे। पण ईस्कूली स्तर पर काम कम हो रियो है। ईस्यो माहोल बणायो जाणो चाइजे के जिण सूं नुवी पीढी राजस्थानी भासा साहित्य संस्कृति अर मान्यता री पीड ने समझै।

राजस्थानी भासा मान्यता आन्दोलन पर पाखी निजर पसारा तो ई घणो लाम्बो पेंडो तो करणो पडसी। 21 फरवरी 1925 मं तरूण राजस्थान छापै मांय राजस्थानी भासा ने म्मान्यता दिरावण री मांग उठाईजी ही। अर आज सूं 62 साल पेली दीनापूऱ (बंग़ाल) मांय अखिल भारतीय राजस्थानी सम्मेलन रे रूप मांय भासा आन्दोलन से सूं बडो जळसो हुयो जिण री अधयक्षता ठाकर रामसिंह जी करी अर अध्यक्षीय उदबोधन में से सूं बडो 56 पाना रो भासण पढिज्यो। उणरै पछै तो घणकारी संस्थावा इण आन्दोलन नैजारी राख्यो। राजस्थानी शोध संस्थान जोधपुर, राजस्थानी भासा विकास संस्थान जालोऱ राजस्थानी भासा प्रचार संस्थान नाग़ोर, प्रताप शोध संस्थान उदयपुर, साहित्य संस्थान उदयपुर, युगधारा उदयपुर, बागड साहित्य परिषद डूंगरपुर, चारण शोध संस्थान अजमेर, हाडोती शोध संस्थान कोटा, ज्ञान भारती शिक्षण संस्थान कोटा, राजस्थानी भासा प्रचार सभा जयपुर, शेखावाटी भासा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी लक्ष्मणगढ सीकर, बिडला एज्युकेशन ट्रस्ट पिलाणी झुंझुनूं, नगर श्री चुरू, राजस्थानी साहित्य समिति बिसाऊ कल्पना लोक रतनगढ, राजस्थानी विभाग राष्ट्र भासा हिन्दी प्रचार समिति श्री डूंगरगढ, भारतीय विधा मंदिर शोध संस्थान बीकानेर, महाराजा अनूपसिंह संसकत लाइब्रेरी, सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीटयूट बीकानेर, अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर, मरूधारा बीकानेर, आचार्य तुलसी राजस्थानी शोध संस्थान बीकानेर, हिन्दी विश्‍व भारती अनुसंधान परिषद बीकानेर, राजस्थानी विधापीठ संस्थान बीकानेर, भारतीय भासा परिषद कोलकाता, राजस्थानी भासा प्रचारिणी सभा कोलकाता, राजस्थानी आकादमी नई दिल्ली, मारवाडी सम्मेलन मुम्बई, श्रीमती कमला गोइन्का फाउंडेशन मुंबई राजस्थानी रत्नाकार दिल्ली, सरस्वती संस्था परलीका, श्री हनुमान सरावगी ट्रस्ट रांची बिहार, राजस्थानी परिवार दिल्ली, मरुधारा साहित्यिक संस्थान हनुमानगढ, राजस्थानी भासा प्रचार समिति सुरतगढ अर ओर ई घणी संस्थावां, जिका रा नांव हूं संजो नीं सक्यो हूं आपो आपरे ढंग सूं राजस्थानी भासा मान्यता आन्दोलन साहित्य अर सांस्कृतिक बधेपै सारू घणा महताऊ पांवडा भरया अर अजै भर रया है।

राजस्थानी भासा री मान्यता रो आन्दोलन भलां पांवडा भरया हुवै पण ओजूं तांइ हार कोनी मानी है। कई बार सुणनो पडै क ओ साहित्यकारां री आन्दोलन है तो के साहित्यकार किस्या माणस कोनी हुवै। अर साहित्यकारां री महती भूमिकआ नकारी नी जा सकै बा ई वास्तै नै बूझण नीं दीनी कजळाइजण कोनी दी।

नरोतम दास स्वामी, विधाधर शास्त्री, मुरलीधर व्यास, मूळचंद प्राणेश, राणी लक्ष्मीकुमारी चुंडावत, पृथ्वीराज राठौड, सूर्यकरण पारीक, रामसिंह तंवर, गिरधारी सिंह पडिहार, ठाकर रामसिंह, चन्द्रदान चारण, श्रीलाल नथमल जोशी, ओंकार श्री, अटवालाल माथुर, नारायणसिंह भाटी, गणेश लाल उस्ताद, सीताराम लालस, श्रीमंतकुमार व्यास, विजयदान देथा, मोहन आलोक, सीताराम महर्षि, कन्हैयालाल सेठिया, अम्बू शर्मा, रतन शाह, मनोहर लाल गोयल, कल्याणसींह शेखावत, कलयाण सिंह राजावत, मेघराज मुकुल, डा.देव कोठारी, पृथ्वीराज रतनु, भवानी शंकर व्यास, ओंकार सिंह लखावत, भंवरसिंह सामोर, मदन केवलिया, औंकार श्री, श्याम महर्षि, करणीदान बारहठ, नूंठी पीढी मांय मालचंद तिवाडी, दारा सिंह स्याग, ज्योति पुंज, उपेन्द्र अनू, विष्णु माली, पुरूषोतम पल्लव, जी. एस. राठौड, घनश्याम भींडर, तुलसी दास, कैलास मंडेला, मुकुट मणीराज, शिवराज भारतीय, प्रहलाद राय पारीक, पदम मेहता, ओम पुरोहित कागद, रामस्वरुप किसान, भरत ओळा, सत्यनारायण सोनी, विनोद स्वामी, राजेन्द्र बारहठ, शिवदान सिंह जोलावस, दुलीचन्द मेघवाल, हनुमान दीक्षित, पूरण शर्मा, लक्ष्मणदान कविया, अर्जुनदेव चारण, मीठेश निर्मोही, लालदास राकेश, जितेन्द्र जालोऱी, हरिमोहन सारस्वत, देवदास रांकावत, नथगिरी भारती, मदन सैनी, किरण नाहाटा, दुलाराम सहारण, करणी सिंह, करणीसिंह राठौड, शकर सिंह राजपुरोहित, मदन पारीक, करणीदान सिंह राजपूत, तोळाराम स्वामी, अली मोहम्मद पडिहार, दुलीचंद मेघवाल राजू बिजारणियां। आद-आद तो केवणा लिखणा ई पडसी क्यूंक नावां नावां रो ई जिकर करां तो कई दिन लाग जिसी।

राजस्थानी भासा ने प्रदेश री भासा सारू पेलपोत रा मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास 1 सितम्बर 1944 मं ज्ञापन भारत सरकार ने दियौ। उणा रै पछै 8वीं सूची मांय भेळी करावण सारू स्व.महाराजा करणीसिंह, डा.लक्ष्मीमल सिंघवी, गुनानम लोढा। न्याऱा न्यार आ विधेयक राख्या पण पार कोनी पडी, 22 जुलाई 1992 में वोट कल्ब दिल्ली पर धरणो दरिज्यो। 28 जुलाई 1992 में भैरु सिंह जी री सरकार आगे पूनमचंद बिश्नोई राजस्थानी भासा प्रदेश री दूसरी भासा बनावण री मांग़ करी। 25 सितम्बर 1992 में बी.डी.कल्ला राजस्थानी ने मान्यता री बात विधानसभा में उठाई। इणि तरिया ओ संघर्ष चालतो रियो पण रैहया तिस्याई। अब जरूरत ही एक जन आन्दोलन री जिको पेली राजस्थानी भासा प्रचार समिति अर पछै अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मान्यता संघर्ष समिति रे रूप मांय एक संगठन उभरियो अर जिग्यां-जिग्यां धरणा, प्रदर्शन, रैलियां, गोष्ठि्यां, गांव-गांव ताई आ बात पुगाइजी क राजस्थानी भासा ने संविधान री मान्यता नी हुवण सूं के नुकसान है अर मान्यता हूवण रो के फायदो है। बतावण से लोग समझण लाग्या अर आन्दोलन सूं जुडता गया। धपाऊ रा स्टीकर हेला पत्रक, दोहा, छापिया। दोहा समिति रै हैला पर प्रदेशाध्यक्ष भरत ओळा री अगुवाई में विधान सभा सामी 3 मार्च 2003 में धरनो दिरिज्यो। जिण माय प्रदेश रा सगले जिला सु हजारु लोग पुग्या। उण बखत रा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद आर ज्ञापन लियो। लोगां में घणो जोश हो। 25 अगस्त 2003 रो दिन घणो सुखदाई हो। क ईण दिन सगळा री सहमति सु राजस्थान विधानसभा मांय ओ प्रस्ताव पास करिज्यो क राजस्थानी भासा ने 8 वीं अनुसूची मां भेळी करी जावे। आ आन्दोलन री बडी जीत ही। आखे प्रदेश मांय अर देश मांय खुशी मनाईजी। मिठाईया बांटीजी, बधाई दरीजी। उडीक बेसबरी सु करण लाग्या क केन्द्र सरकार राजस्थानी भासा ने 8वीं अनुसूची मां भेळी करण री घोषणा संसद मां करसी। बातडी बण ई गई ही बोडो, संथाली, मैथिली, डोगरी रे साथे राजस्थानी ने मान्यता मिलणी ही पण कुण जाणे कुण से इ रो कांटो आ बिच्चाळे नाख्यो जिके रो चारु भासा तो बडभागी रहगी अर म्हारी मायड भासा निरभागी होगी। आपाने फेर टाळ दिया बडो झटको लाग्यो। राजस्थानी भासा हिताळूआ रे। ईया लाग्यो कि आश टूट गी पण आन्दोलनकारी फेर भेळा हुया। सुरतगढ मांय ते हुयो क ऐतिहासिक रथ जात्रा जिण रो नाम राख्यो मायड भासा सम्मान जात्रा काढी जावे जिण रो उद्देश्य ओ राख्यो कि सारे राजस्थान नीं तो जठे कर जात्रा टिपै बठे रे रेवासिया ने आ बात बताई जावे कि आपणे साथे के अत्याचार हुय रियो है।

सगळी सहयोगी संस्थावां री भेळप आंय रथ जात्रा सारू राजस्थानी सम्मेलन रो नाम राख़्यो। मायड भासा रे हेताळूआ री इच्छा हि क इण मायड भासा सम्मान जात्रा री विधिवत घोषणा म्हारा बडेरा करे। जैपर मांय राणी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, कल्याणसिंह राजावत, पदम मेहता, कल्याणसिंह शेखावत, शोभाग्यसिंह शेखावत, ठाकुर औकार सिंह आदि द्वारा एक प्रेस कोन्फ्रेंस बुलायोडी ही जिकी ही तो विरोधियां रो जवाब देण सारु। जवाब भी दिरिज्यो साथे सम्मान जात्रा री घोषणा हुई।

उण प्रेस कोन्फ्रेंस मांय दारासिंह स्याग, राजेन्द्र बारहठ, रामसिंह अर हूं गया। बा बडेरा पेली म्हाने चोखी तरिया देयर बीर करिया। हरिमोहन सारस्वत री आगुवाई में मायड भासा दिवस 21 फरवरी 2005 में ते सुदा बगत पर श्री गंगानगर सु गाजे बाजे रे साथे जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील सम्मान जात्रा ने रवाना करी। लोगां में घणो जोश हो। बिया तो सनमान जात्रा रा घणाई मायड भासा रा हेताळू वा आपोे आप र साधना सु सागो करियो पण श्रीगंगानगर सु ठेठ दिल्ली ताई ईण करडी अबकि जात्रा रा जात्रियो रो जिकर करणो जरुर चावसु बुजुर्ग समाजसेवी दिलात्मप्रकाश जी जैन, प्रो.अली मोहम्मद पडिहार, रामस्वरुप किसान, दारासिंह स्याग, सीताराम शर्मा, हरि मोहन सारस्वत, मुकेश चौधरी, मनोज स्वामी, वेदप्रकाश छाबडा, राजेन्द्र बारहठ जोधपुर सु रळिया। भरत जी ओळा हनुमानगढ सु जालोर ताई सत्यनारायण जी सोनी बिमार होवता थका सुरतगढ ताई, मोहन आलोक सुरतगढ ताई, तोलाराम स्वामी बिकानेर ताई, अर्जुन देव चारण, मिठेश निर्मोही जोधपुर से जालोर ताई साथे रेया। आपसी सुविधा मुजब जात्रिया रे रूप मांय गंगाजल मील, श्रीमती राजेश सिडाना, अमरचन्द बोरड साथे रेया। अदभुत ही आ जात्रा। जिण रो बरणन एक बैठ्क मांय नी हु सके। मारो सोभाग हो क म्हे इण सन्मान जात्रा मांय रामस्वरूप किसान, विनोद स्वामी प्रो.अली मोहमद पडिहार ने जठे जठे ढोल धमाका साथे स्वागत हुयो नाचता देख्या। अर बा घडी किडी यादगार जी जणा इणा रे नाच पर बिजिसा रिपया उवारिया उणा री आखिया भीजगी। खैर 4 मार्च 2005 ने जात्रा दिल्ली पुंचगी बठे गंगाजल मील, पदम मेहता, प्रभु ठाकुर पेली सु हि केन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज जी पाटिल सु बगत ले राख्यो हो। बा बरसते मैह ंमं नेह सु म्हारो ज्ञापन लियो बात सुणी-बरसते मैह मं ई रथ ताई आया साथे फोटु खिंचाई अर राजस्थानी भासा ने मान्यता दिरावण रो भरोसो दिरायो। बा पछे उपराष्ट्रपति भैरोसिंह जी सु मिल्या घणी चरचा हुई फेर अशोक गहलोत सु मिल्या। बा सगळा री आवभगत करी मिजबानी करी अर सोनिया जी रे नाम रो ज्ञापन लियो अर भासा ने मान्यता दिरावण रो भरोसो दिरायो। बात पुरी करण सु पेला स्व.अबुल वहीद कमल साहब री ए ओळिया आप सामी बाचणो चावु।

मै भासा री पीड उगेरु थे दुजा गीत सुणावो ना।
म्हारे हिवडे पीड हिलोरा, थे बाता म बिलमावो ना।।
इ रुपा रुडी भासा ने, राजस्थानी भासा ने,
धोरा धरती मानखे री, एक सांतरी आशा ने,
थे मुळक मिजळते होठा सु, लाखो लाड लडाओ ना।
मं भाासा री पीड उगेरू थे दुजा गीत सुणाओ ना।।
भासा री बाता आय उढे, काळजियो लपटा लाय उठे,
घर रो जोगी जोगणो, थे दुजा सिध पुजाओ ना।
मं भासा री पीड उगेरु थे दुजा गीत सुणावो ना।।
भगती में जिकी डुबी रण खेता में उगी,
सिणगार संजोयो सेजा रो, रण खेता मे उभी,
बा सुरा संता री बाणी रो, थे मायड दुध लजाओ ना।
मं भासा री पीड उकेरु थे दुजा गीत सुणावो ना।।
अब बात आ क पंचा री बात सिर माथे पण
पतनाळो बठे रो बठे आपणली बात अजे सिरे कोनी चढ़ी
तो के करा थे ई बताओ।
मरणे मारणे री दरकार हुवे तो त्यार हा।
म्है तो लिया दिया हि फिरा हा,
फकर मायड भासा खातर इ जिया हा।
जै राजस्थानी- जै राजस्थानी

 

 

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